Ravi ki duniya

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Tuesday, July 26, 2016

लघु व्यंग्य कथा : ब्रेकिंग न्यूज चिंकारा हत्या या आत्महत्या





                एक जाँच दल चिंकारों से पूछ्ताछ करेगा और उनके बयान दर्ज़ करेगा कि घटना के दिन चिंकारा किन किन दोस्तों के साथ था.? ........चिंकारा के दोस्त कौन थे...उसकी किसी से रजिश थी क्या ? कोई प्यार - मुहब्बत का चक्कर था क्या ? या फिर ज़मीन के टुकड़े को लेकर कोई विवाद तो न था. आखिर बुजुर्गों ने कहा है कि लड़ाई हमेशा जर, जोरू, ज़मीन को लेकर होती है. बाकी चिंकारों की धर पकड़ जारी है. हो सकता है इस हत्याकाँड के तार विदेश से जुड़े हों अत: एक 45 सदस्यीय मिनी जाँच दल अफ्रीका और अन्य जगह के चिंकारों से भी पूछ्ताछ करेगा. इस बीच एक अध्यादेश जारी कर एक ऐसा क़ानून लाया जायेगा जिसमें चिंकारों की आत्म हत्या को एक अपराध माना जायेगा. 

चिंकारा की कॉल डिटेल्स निकाली जा रही हैं. उसके परिवार के और दोस्तों के फोन को सर्विलेंस पर रखा जा रहा है. इस बीच चिंकारों का एक दल राजधानी के लिये रवाना हो गया है जहां वे वन मंत्री, सूचना मंत्री, और गृह मंत्री से मिलेंगे और ज्ञापन सौंपेंगे कि इस पूरे काँड की जाँच सी.बी.आई से कराई जाये.

व्यंग्य : कथा लोक की लोक कथा




एक राज्य में बड़ी अव्यव्स्था थी यह तय हुआ कि कल सुबह सुबह जो पहला आदमी दिखाई दे उसे ही राजा बना देंगे और वर्तमान राजा को वानप्रस्थ में जाने को कहेंगे. अगले दिन सुबह-सुबह देखा कि एक बड़ी हुई दाढ़ी में साधु जैसा दिखने वाला तेजस्वी व्यक्ति कमंडल लेकर चला जा रहा है.. बस उसकी जय जयकार करते हुए उसे महल में ले आया गया. उसने भी पूरे उत्साह से काम करना शुरू कर दिया और वो इस कोशिश में लग गया कि दुनियां को दिखा दे कि वह सबसे बेहतरीन राजा है, केवल राज्य में बल्कि दुनियां में. कुछ माह तो सब ठीक ही ठाक चला फिर राज्य में सौहार्द बिगड़ने लगा. प्रजा में मार काट मचने लगी. क्या साधु क्या गृहस्थ क्या नौकरी पेशा क्या व्यापारी सब उससे परेशान रहने लगे. बेरोज़गारी वायदे अनुसार कम होने के बजाय बढ़ने लगी. विभिन्न सम्प्रदाय के लोग आपस में लड़ने मरने लगे. नित नये नये रूप में अत्याचार, आगजनी, मार-काट मचने लगी. ऐसा नहीं कि ये सब राजा करा रहा था बल्कि कहना चाहिये कि राजा के वज़ीर, और राज्य के कुटिल व्यक्ति इस सब में मशगूल थे. राजा रोकने में नाकामयाब था. उसे इसमें कोई सरोकार न था. वह हर घटना पर बस दुख जता देता था और इमोशनल हो जाता था. कभी दार्शनिक समान बात करता कभी जब बहुत हाय तौबा मचती तो लोगों से अपील करता कि राज्य में शांति बनाये रखें योग का अभ्यास करें. स्वच्छता को अपनायें. शौचालय बनवायें, खाते खुलवायें, दाल में पानी मिला कर खायें. आदि आदि. मँहगाई आकाश पर थी. हर तरफ हत्या, बलात्कार और दंगे फसाद होते थे. कभी जिंदा गाय को लेकर, कभी मृत गाय को लेकर. आदमी की कीमत गाय की कीमत से कहीं नीचे थी. हाँलाकि कुत्तों को मारने, जलाने और छत से नीचे फेंकने की घटनायें राज्य में खूब होतीं थीं. बल्कि कुत्तों को खानेपकाने के फेस्टिवल होते थे. अलबत्ता गाय को खाना देने और पालन करने के बजाय उनके मालिक उन्हें खुल्ला छोड़ देते थे गाय लोग कूढ़ेदान- कूढ़ेदान जा जा कर शहर की सब गंदगी खातीं थीं. इस तरह स्वच्छता के पावन मिशन में अपना योगदान दे रहीं थीं यहां तक कि पॉलिथिन की थैलियां खा खा कर जान दे रहीं थीं.

ऐसे में राज्य मे इतनी उथल-पुथल देख कर एक दिन मौका देख पड़ोसी राज्य ने हमला बोल दिया. राजा को उसके दरबारियों और गुप्तचरों ने बताया तो राजा बोला कोई बात नहीं मैं हूं ”. फिर बताया शत्रु राज्य में घुस आया है राजा बोला कोई बात नहीं मैं हूं ”. फिर बताया शत्रु राजधानी में आ गया है. राजा बोला कोई बात नहीं मैं हूं न”. फिर एक दिन बताया कि शत्रु महल के द्वार पर आ गया है. राजा बोला "कोई बात नहीं मैं हूं न." फिर बताया गया महाराज शत्रु महल में घुस आया है

इस पर राजा बोला मेरा कमंडल कहाँ है ? मैं तो चला !

Wednesday, July 6, 2016

व्यंग्य किस्सा-ए-साला ज़ीजा

साला कोई गाली नहीं ये तो यूँ ही प्यार दुलार में कहा जाता है जब किसी को बहुत सम्मान देना हो तो इस संबोधन का प्रयोग किया जाता है। साला पूरणतः स्वदेशी है । संस्कारी है। समस्त ब्रहमांड में प्रत्येक किसी न किसी का साला है। यह संबोधन हमें विश्व से जोड़ता है। आप तो जानते ही हैं आज समस्त संसार में भारत का जो साल्सा हो रहा है। यह जीभ का योगासन है। साला कहने में जीभ पहले तालू से लगती है फिर वापस आती है। यह एक प्रकार का जीभ से किया गया सूर्य नमस्कार है।साला रिश्तों की सरगम का पहला सुर है। सा ...... ज़िन्दगी की रागिनी यहीं से शुरू होती है। महाभारत काल से ले कर मुगल काल तक और मुगल काल से ले कर वर्तमान तक तारीख गवाह है सालों ने बहुत ही महत्ती भूमिका निभाई है। फिर चाहे वह परिवार में हो। दरबार में हो। या फिर सियासत के दाँवपेच में हो। जो सत्ता में हैं जीजा तो बस वे ही हैं बाकी सब खासकर विपक्षी तो सब साले ही हैं। अब चाहे ये संबध पाँच साला ही क्यों न हों। पब्लिक चुनाव में फिर चुनती है कौन कौन जीजा बनेगा। कौन कौन साला। भाईयो और बहनों ! ये तो बस पाँच साले यानि कि पँच वर्षीय संबध हैं।
 
आदरणीय गृह मंत्री जी ने यह भी कहा है कि उनकी तो आदत है ऐसे कहने की। इसमें बुरा मानने की क्या बात हो गई। दरअसल ऐसा कह कर उन्होंने पूर्व प्रधान मंत्री की इज्जत बढ़ाई है। वे कह सकते हैं कि उनके जीजा श्री सूबे के होम मिनिस्टर हैं। साथ ही अपनी इज्जत अफजाई की है वे कह सकते हैं कि मेरा एक साला सालों तक हिन्दुस्तान का पी एम रहा है।
 
श्री श्री गुलाब चंद जी चंद दिनों की बात है फिर पब्लिक ने डिसाइड कर देना है कौन साला बनेगा कौन जीजा। ताज्जुब इस बात पर भी है कि किसी ने अभी तक ये बयान नहीं दिया कि तुमने भी तो साठ साल में कितनी बार हमें साला कहा था या साले से भी भारी भरकम डिगरियों से नवाजा था। 

जहां तक बात गुलाब की है तो मित्रो !

" गुम हो गये शख्स ईमान ओ आबरू वाले
अब गुलाब कहाँ मिलते हैं खुशबू वाले "