Ravi ki duniya

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Monday, November 16, 2015

व्यंग्य: ये कैसा धमाका...कैसी रिपोर्टिंग ?


फ्रांस में गोली बारी से सैकड़ों लोगों ने जान गँवा दी. आतंकवादी ढेर हो गये और उनके साथियों की पकड़-धकड़ जारी है. मगर न जाने क्यूं मुझे लगा कि कोई रिपोर्टिंग ठीक से नहीं हुई. फ्रांस के रिपोर्टरों को हमारे काबिल, रिपोर्टरों से अभी बहुत कुछ सीखना बाकी है. जैसे कि “ आपको कैसा लग रहा है ? “ आपने क्या देखा ? उसके दाढ़ी थी या नहीं ? वो कितने लोग थे. ? आपको क्या लगता है वो किस पार्टी, आई मीन किस देश के लग रहे थे ? किस भाषा में बात कर रहे थे. ? चलिये अपने संवाददाता जो घटनास्थल पर सुबह तड़के से ही हैं से बात करते हैं. आप हमें सुन पा रहे हैं ...राम खिलावन ..क्या देख रहे हैं आप ? अब कसा माहौल है वहाँ ? हमारी किसी चश्मदीद से बात कराइये. लगता है हमारी आवाज उन तक पहुंच नहीं पा रही है.

उधर दूसरे चैनल पर कुछ सफेद बालों वाले, वेले किस्म के पेशेवर बुद्धिजीवी जो 50 साल पहले रिटायर हो गये थे, बैठे आँकड़ों की जुगाली कर रहे हैं. “ जब दक्षिण पूर्व एशिया में सन चौरासी में ऐसी ही घटना पहली बार हुई थी......मैंने खुद तत्कालीन प्रधानमंत्री को कहा था......”


तीसरे चैनल पर प्रमुख राजनैतिक दलों के स्पोक्स पर्सन एक दूसरे के कपड़े फाड़ने को तत्पर थे. आप 50 साल से सत्ता में आपने क्या किया ? आज हमसे हिसाब माँगने चले हैं . कितने ही हज़ारों बेगुनाहों कि जान गई. आप हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे. बल्कि कुछ में तो आपके बड़े बड़े नेता खुद ही आज तक फँसे हुए हैं. हमारे कार्यकाल में तो महज़ कुछ सैकड़ों की ही जानें गई हैं. जाँच चल रही है. गुनाहगारों को बख्शा नहीं जायेगा. हम छोटे राजन को ले आये हैं बाकी के राजनों बड़ा राजन, मंझला राजन उन सब को भी लायेंगे. आपकी तरह नहीं.
 


चौथे चैनल पर कुछ लेखक, कलाकार बैठे अपने अपने पुरस्कार वापस करने आये थे जबकि कुछ उन्हें किसी न किसी पार्टी का दलाल बता रहे थे. आप तब कहां थे जब नादिरशाह ने दिल्ली में क़त्ले आम मचाया था ? आपने तब क्यों चुप्पी साध ली थी ? . तब पुरस्कार वापस क्यों नहीं किया ? . जब रज़िया सुल्ताना को बेरहम डकैत मार गये थे ? . देखिये देखिये आप मिक्स मत करिये इसमें सेंटर का क्या लेना देना. लॉ एंड ऑर्डर स्टेट का सब्जेक्ट है. जनता सब जानती है. आप की बिहार चुनाव में क्या गत हुई है वैसे ही पूरे देश में होगी.


पांचवे चैनल पर “ आपको पता भी है अरहर का क्या भाव है. प्याज किस भाव बिक रही है. आपकी ग्रोथ रेट को क्या आम आदमी ओढ़े या बिछाये.”

छठे चैनल पर “ हम बहस से भटक गये हैं ... बात फ्रांस के पेरिस शहर में गोलीबारी की हो रही थी. ये प्रधान मंत्री को क्या पड़ी है इतने विदेशी दौरे करने की. वो भारत के प्रधानमंत्री हैं या ब्रिटेन के ? . जहां जहां जाते हैं आतंकवाद पर ऊल ज़लूल बयानबाज़ी होती है, उस से आतंकवादी और चेंट जाते हैं और नाराज़ हो कर, चिढ़ कर अपनी प्रतिक्रिया देते हैं. हमें बेकार की बयानबाजी से बचना चाहिये. हम हिंदुस्तानी हैं. हमारे देश के नाम में ही हिंदु शब्द है. जो अपने आपको हिंदु नहीं समझता वह देश छोड़ कर जाने को तैयार रहे. मंदिर का निर्माण हो कर रहेगा. हम इसके लिये प्रतिबद्ध हैं.”


सातवें चैनल पर “फ्रांस ने बहुत अत्याचार किये हैं. हज़ारों स्वतंत्रता सेनानियों को बैस्टिल की जेल में बंद कर दिया था. भोली भाली जनता के ऊपर गिलोटिन चला दी थी. मेरी एंटॉयनेट ने तो लोगों की ग़रीबी मज़ाक बनाते हुए यहाँ तक कह दिया था कि अगर उनके पास रोटी नहीं है तो वे केक क्यों नहीं खाते हैं. लोग भूले नहीं हैं वो सब अत्याचार.


आठवें चैनल पर “ हम सबको आतंकवाद से लड़ना है. इसके लिये हमें एक होना है. और आतंकवाद की लड़ाई पड़ोस से ही शुरू करनी है. हम सहन नहीं करेंगे. हम कड़े शब्दों में इसकी निंदा करते हैं. आप चाहें तो हम पेरिस जा कर भी ये बात कह सकते हैं ! बाई द वे कब की फ्लाइट है ? . सुना है आप स्पॉन्सर कर रहे हैं ? ख्याल रखियेगा. पिछली बार मेरा हमनाम एक मद्रासी रविंद्रन चला गया था. मैं दिल्ली वाला रविंदर हूं., ...जैसे धरमेंदर, सुरेंदर और हाँ ! अच्छा याद दिलाया.... नरेंदर

Tuesday, November 10, 2015

व्यंग्य : शत्रुघ्न अकेले नहीं


जी हाँ शत्रुघ्न सिन्हा अकेले नहीं जिन्हें मोदी और अमित शाह जी ने बिहार चुनाव के दौरान बुलाया नहीं. मुझे भी नहीं बुलाया. और अब रिजल्ट देख लो. पार्टी में वरिष्ठों (बूढ़े नहीं) की अनदेखी करोगे तो यही होना है. मैंने इत्तिला भी भिजवाई कई बार कि इन दिनों मैं खाली हूं, पार्टी चाहे तो चुनाव प्रचार के लिये, प्रचार सभाओं में मेरी ओज़मयी वाणी और लटकों झटकों का इस्तेमाल कर सकती है. मगर न जी ! वहाँ न रेंगनी थी, न रेंगी किसी के भी कान पर जूँ . अब भुगतो नतीज़ा. मैंने भतेरा कहा था कि मैं पिछली बार की तरह आप की शान में कवितायें सुनाऊंगा. प्रतिद्वंदी की हास्य रस की चुटकियों से ऐसी तैसी कर छोड़ूंगा, पर नहीं, पता नहीं क्यों किसी को भी इस बार ये आइडिया भाया ही नहीं और बात–बात में मेरा ही मखौल उड़ा दिया यह कह-कह कर कि “ वाट एन आइडिया ”.

मैंने कहा भी था कि मुझ जैसे इंसान पर भी नैतिकता के चलते प्रेशर आ रहा है कि मैं अपना पुरस्कार वापस कर दूं... वो तो भला हो व्यव्स्था कि मैंने कोई पुरस्कार कभी लिया ही नहीं (सच तो यह है मुझे कोई पुरस्कार मिला ही नहीं) कि जिसे लौटाने का कोई कैसा भी दबाव रहता


अमित अपने को अमिताभ बच्चन ही समझने लग पड़े हैं . अरे भैया फिल्मों में ठीक है. ऊ कहा कहते हैं “ हम जहाँ खड़े हो जाते हैं लाइन वहीं से शुरू होती है ” यह पोलिंग बूथवा की लाइन है. यहाँ ऊ सब नहीं चलबे करता है. कितनौ ही बार इशारा तो दिये थे पर आप न जाने कौन दुनियाँ में थे. “ पीटर ! अब ये ताला मैं तुम्हारी जेब से चाबी निकाल कर ही खोलुंगा” यहाँ ये सब नहीं न चलता है. जब अपना ही ‘बिकास’ के लाले पड़े हों तब स्टेट के बिकास की बात समझ से परे है.


अच्छा हम तो यहाँ तक कह दिये थे कि आप को कविता कहानी का शौक़ नहीं कोऊ बात नहीं हम ‘बिरोधी’ खेमा में जा के सुना आते हैं अपने बोट नहीं पड़ेंगे तो ससुरा बिरोधियन के बोट तो काटबे का परि कि न परि. बो क्या कहते हैं कि ‘अटैक इझ धि भैस्ट डिफेंस’. जब हमें पक्का हो गया कि इस बार यहाँ दाल न गले तब हम ‘अंडर ग्राऊंड’ हो गये. कनसुआ लेते रहे थे कि कोई अब आये कि अब आये, हमें बूझता हुआ. मगर न जी ! अथि न कोई आना था ना आया. अब करो अपनी हार पर चिंतन. दाल से याद आया कि आपने दाल का किया क्या ये ? ‘....दाल को दाल ही रहने दो ड्राई फ्रूटका नाम न दो..... सिर्फ गरीब-गुरबा के पास है ये.... थालिया से न दूर करो, दाम बढ़ा कर ड्राईफ्रूट का नाम न दो...’


ये तंतर मंतर हमारे दैनिक जीवन का अंग है. हम छींक से घबरा जाते हैं. हम कुत्ता के कान फड़फड़ाने से लेकर बिल्ली के रास्ता काटने से भी अपने काम के प्रति आशंकित हो जाते हैं. हम मंगल को मीट नहीं खाते. कार में नींबू और मिर्च लटकाते हैं. हम ‘बिधी बिधान’ से टोना- टोटका सब करते हैं . हम दिन तिथी बाँच कर ही घर से बाहर कदम रखते हैं. और आप हमारी इसी संस्कृति का भरी सभा में मज़ाक बना दिये. तब क्या रही जब आप ही के फोटू बेजान दारूवाला और बापू आसाराम के साथ के उजागर हो गये.


आरक्षन पर कहना चाहिये थे कि 100% आरक्षन होगा, आप उल्टा बोल दिये कि इसकी समीक्षा करेंगे..अब कोनू बुड़बक हैं क्या मनई.... वो जानते हैं कि आप इतने भोले तो हैं नहीं. समीक्षा आप लोग बढ़ाने को तो करेंगे नहीं ज़रूर से ज़रूर घटाने को ही करेंगे. आप को कहना चाहिये था कि 100% का 100% भारतीयों के लिये आरक्षन रहेगा. और हर जात को आरक्षन मिलबे करि. भारत तो पूरा का पूरा गरीब, पिछड़ा हुआ है. इसमें सब ही तो पिछड़े, दलित और महादलित हैं. अत: ये अब कोई दलित रहेगा न महा दलित सब भारतीय हैं. पॉपुलेशन की गिनती दुबारा से कराए के पड़ि. तब तक न कोई क्रीमी लेयर न कोई नॉन क्रीमी लेयर. सब सपरेटा है.

और ये गाय-कुत्ता से ऊपर उठिये. ये गाय-बैल में कुछ नहीं रखा है सिवाय फज़ीहत के. कॉन्ग्रेस क्या पागल है जो अपना चुनाव चिन्ह गाय बछड़ा से बदल कर हाथ रखी है. जिसको गाय खाये के परि वो खाये और जिसे पालने का परि, माता मौसी बनाय का परि वो वैसी श्रद्धा रखे. ये स्टेट का टॉपिक ही नहीं. आप नॉन इशू को इशू बना दिये और इशू को नॉन इशू. आपके जितना नेता लोग लूज़ टॉक करते हैं सबको एक दिन बुलाकर कह दीजिये “ खामोश....जली को आग कहते हैं...बुझी को राख कहते हैं...” वगैरा वगैरा


आप सहयोगी दल भी तो ऐसे रखे कि लोग बाग हँसते थे. आप को क्या ज़रूरत आन पड़ी पासवान या मांझी जी की ?. आप वो गीत नहीं सुने हैं ? “मांझी जो नाव डुबोये.... तो कौन बचाये”. आप परधान मंतरी हैं आप को ये स्टेट के चुनाव में गली गली घूमना... पैकेज पर पैकेज एनाऊंस करना भाता नहीं है. तनिक इतिहास उठा कर देखिये तो सही, कोई और प्रधान मंत्री ऐसे किये रहा क्या कभी ?

अब कहा बताई. गलती तो आप कर दिये. एक ठौ बात तो आप गाँठ बांध लीजिये कि ये अमित शाह कोई सुपर स्टार नहीं हैं. ये इस सदी के महानायक भी नहीं हैं. महानायक का ? ये नायक भी नहीं. वो तो एक बार तुक्का लग गया... तो क्या बार बार लगी ?. इन्हें चलता कीजिये ! और कहिये अब आप ‘कुछ दिन तो गुजारिये गुजरात में’. अपने साथ कुछ पढ़े लिक्खे लोग रखिये. जानकार लोग रखिये, समझदार लोग रखिये. अब क्या हमारे मुँह से ही कहलवाई कि हमें रखिये