Ravi ki duniya

Ravi ki duniya

Monday, November 16, 2015

व्यंग्य: ये कैसा धमाका...कैसी रिपोर्टिंग ?


फ्रांस में गोली बारी से सैकड़ों लोगों ने जान गँवा दी. आतंकवादी ढेर हो गये और उनके साथियों की पकड़-धकड़ जारी है. मगर न जाने क्यूं मुझे लगा कि कोई रिपोर्टिंग ठीक से नहीं हुई. फ्रांस के रिपोर्टरों को हमारे काबिल, रिपोर्टरों से अभी बहुत कुछ सीखना बाकी है. जैसे कि “ आपको कैसा लग रहा है ? “ आपने क्या देखा ? उसके दाढ़ी थी या नहीं ? वो कितने लोग थे. ? आपको क्या लगता है वो किस पार्टी, आई मीन किस देश के लग रहे थे ? किस भाषा में बात कर रहे थे. ? चलिये अपने संवाददाता जो घटनास्थल पर सुबह तड़के से ही हैं से बात करते हैं. आप हमें सुन पा रहे हैं ...राम खिलावन ..क्या देख रहे हैं आप ? अब कसा माहौल है वहाँ ? हमारी किसी चश्मदीद से बात कराइये. लगता है हमारी आवाज उन तक पहुंच नहीं पा रही है.

उधर दूसरे चैनल पर कुछ सफेद बालों वाले, वेले किस्म के पेशेवर बुद्धिजीवी जो 50 साल पहले रिटायर हो गये थे, बैठे आँकड़ों की जुगाली कर रहे हैं. “ जब दक्षिण पूर्व एशिया में सन चौरासी में ऐसी ही घटना पहली बार हुई थी......मैंने खुद तत्कालीन प्रधानमंत्री को कहा था......”


तीसरे चैनल पर प्रमुख राजनैतिक दलों के स्पोक्स पर्सन एक दूसरे के कपड़े फाड़ने को तत्पर थे. आप 50 साल से सत्ता में आपने क्या किया ? आज हमसे हिसाब माँगने चले हैं . कितने ही हज़ारों बेगुनाहों कि जान गई. आप हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे. बल्कि कुछ में तो आपके बड़े बड़े नेता खुद ही आज तक फँसे हुए हैं. हमारे कार्यकाल में तो महज़ कुछ सैकड़ों की ही जानें गई हैं. जाँच चल रही है. गुनाहगारों को बख्शा नहीं जायेगा. हम छोटे राजन को ले आये हैं बाकी के राजनों बड़ा राजन, मंझला राजन उन सब को भी लायेंगे. आपकी तरह नहीं.
 


चौथे चैनल पर कुछ लेखक, कलाकार बैठे अपने अपने पुरस्कार वापस करने आये थे जबकि कुछ उन्हें किसी न किसी पार्टी का दलाल बता रहे थे. आप तब कहां थे जब नादिरशाह ने दिल्ली में क़त्ले आम मचाया था ? आपने तब क्यों चुप्पी साध ली थी ? . तब पुरस्कार वापस क्यों नहीं किया ? . जब रज़िया सुल्ताना को बेरहम डकैत मार गये थे ? . देखिये देखिये आप मिक्स मत करिये इसमें सेंटर का क्या लेना देना. लॉ एंड ऑर्डर स्टेट का सब्जेक्ट है. जनता सब जानती है. आप की बिहार चुनाव में क्या गत हुई है वैसे ही पूरे देश में होगी.


पांचवे चैनल पर “ आपको पता भी है अरहर का क्या भाव है. प्याज किस भाव बिक रही है. आपकी ग्रोथ रेट को क्या आम आदमी ओढ़े या बिछाये.”

छठे चैनल पर “ हम बहस से भटक गये हैं ... बात फ्रांस के पेरिस शहर में गोलीबारी की हो रही थी. ये प्रधान मंत्री को क्या पड़ी है इतने विदेशी दौरे करने की. वो भारत के प्रधानमंत्री हैं या ब्रिटेन के ? . जहां जहां जाते हैं आतंकवाद पर ऊल ज़लूल बयानबाज़ी होती है, उस से आतंकवादी और चेंट जाते हैं और नाराज़ हो कर, चिढ़ कर अपनी प्रतिक्रिया देते हैं. हमें बेकार की बयानबाजी से बचना चाहिये. हम हिंदुस्तानी हैं. हमारे देश के नाम में ही हिंदु शब्द है. जो अपने आपको हिंदु नहीं समझता वह देश छोड़ कर जाने को तैयार रहे. मंदिर का निर्माण हो कर रहेगा. हम इसके लिये प्रतिबद्ध हैं.”


सातवें चैनल पर “फ्रांस ने बहुत अत्याचार किये हैं. हज़ारों स्वतंत्रता सेनानियों को बैस्टिल की जेल में बंद कर दिया था. भोली भाली जनता के ऊपर गिलोटिन चला दी थी. मेरी एंटॉयनेट ने तो लोगों की ग़रीबी मज़ाक बनाते हुए यहाँ तक कह दिया था कि अगर उनके पास रोटी नहीं है तो वे केक क्यों नहीं खाते हैं. लोग भूले नहीं हैं वो सब अत्याचार.


आठवें चैनल पर “ हम सबको आतंकवाद से लड़ना है. इसके लिये हमें एक होना है. और आतंकवाद की लड़ाई पड़ोस से ही शुरू करनी है. हम सहन नहीं करेंगे. हम कड़े शब्दों में इसकी निंदा करते हैं. आप चाहें तो हम पेरिस जा कर भी ये बात कह सकते हैं ! बाई द वे कब की फ्लाइट है ? . सुना है आप स्पॉन्सर कर रहे हैं ? ख्याल रखियेगा. पिछली बार मेरा हमनाम एक मद्रासी रविंद्रन चला गया था. मैं दिल्ली वाला रविंदर हूं., ...जैसे धरमेंदर, सुरेंदर और हाँ ! अच्छा याद दिलाया.... नरेंदर

Tuesday, November 10, 2015

व्यंग्य : शत्रुघ्न अकेले नहीं


जी हाँ शत्रुघ्न सिन्हा अकेले नहीं जिन्हें मोदी और अमित शाह जी ने बिहार चुनाव के दौरान बुलाया नहीं. मुझे भी नहीं बुलाया. और अब रिजल्ट देख लो. पार्टी में वरिष्ठों (बूढ़े नहीं) की अनदेखी करोगे तो यही होना है. मैंने इत्तिला भी भिजवाई कई बार कि इन दिनों मैं खाली हूं, पार्टी चाहे तो चुनाव प्रचार के लिये, प्रचार सभाओं में मेरी ओज़मयी वाणी और लटकों झटकों का इस्तेमाल कर सकती है. मगर न जी ! वहाँ न रेंगनी थी, न रेंगी किसी के भी कान पर जूँ . अब भुगतो नतीज़ा. मैंने भतेरा कहा था कि मैं पिछली बार की तरह आप की शान में कवितायें सुनाऊंगा. प्रतिद्वंदी की हास्य रस की चुटकियों से ऐसी तैसी कर छोड़ूंगा, पर नहीं, पता नहीं क्यों किसी को भी इस बार ये आइडिया भाया ही नहीं और बात–बात में मेरा ही मखौल उड़ा दिया यह कह-कह कर कि “ वाट एन आइडिया ”.

मैंने कहा भी था कि मुझ जैसे इंसान पर भी नैतिकता के चलते प्रेशर आ रहा है कि मैं अपना पुरस्कार वापस कर दूं... वो तो भला हो व्यव्स्था कि मैंने कोई पुरस्कार कभी लिया ही नहीं (सच तो यह है मुझे कोई पुरस्कार मिला ही नहीं) कि जिसे लौटाने का कोई कैसा भी दबाव रहता


अमित अपने को अमिताभ बच्चन ही समझने लग पड़े हैं . अरे भैया फिल्मों में ठीक है. ऊ कहा कहते हैं “ हम जहाँ खड़े हो जाते हैं लाइन वहीं से शुरू होती है ” यह पोलिंग बूथवा की लाइन है. यहाँ ऊ सब नहीं चलबे करता है. कितनौ ही बार इशारा तो दिये थे पर आप न जाने कौन दुनियाँ में थे. “ पीटर ! अब ये ताला मैं तुम्हारी जेब से चाबी निकाल कर ही खोलुंगा” यहाँ ये सब नहीं न चलता है. जब अपना ही ‘बिकास’ के लाले पड़े हों तब स्टेट के बिकास की बात समझ से परे है.


अच्छा हम तो यहाँ तक कह दिये थे कि आप को कविता कहानी का शौक़ नहीं कोऊ बात नहीं हम ‘बिरोधी’ खेमा में जा के सुना आते हैं अपने बोट नहीं पड़ेंगे तो ससुरा बिरोधियन के बोट तो काटबे का परि कि न परि. बो क्या कहते हैं कि ‘अटैक इझ धि भैस्ट डिफेंस’. जब हमें पक्का हो गया कि इस बार यहाँ दाल न गले तब हम ‘अंडर ग्राऊंड’ हो गये. कनसुआ लेते रहे थे कि कोई अब आये कि अब आये, हमें बूझता हुआ. मगर न जी ! अथि न कोई आना था ना आया. अब करो अपनी हार पर चिंतन. दाल से याद आया कि आपने दाल का किया क्या ये ? ‘....दाल को दाल ही रहने दो ड्राई फ्रूटका नाम न दो..... सिर्फ गरीब-गुरबा के पास है ये.... थालिया से न दूर करो, दाम बढ़ा कर ड्राईफ्रूट का नाम न दो...’


ये तंतर मंतर हमारे दैनिक जीवन का अंग है. हम छींक से घबरा जाते हैं. हम कुत्ता के कान फड़फड़ाने से लेकर बिल्ली के रास्ता काटने से भी अपने काम के प्रति आशंकित हो जाते हैं. हम मंगल को मीट नहीं खाते. कार में नींबू और मिर्च लटकाते हैं. हम ‘बिधी बिधान’ से टोना- टोटका सब करते हैं . हम दिन तिथी बाँच कर ही घर से बाहर कदम रखते हैं. और आप हमारी इसी संस्कृति का भरी सभा में मज़ाक बना दिये. तब क्या रही जब आप ही के फोटू बेजान दारूवाला और बापू आसाराम के साथ के उजागर हो गये.


आरक्षन पर कहना चाहिये थे कि 100% आरक्षन होगा, आप उल्टा बोल दिये कि इसकी समीक्षा करेंगे..अब कोनू बुड़बक हैं क्या मनई.... वो जानते हैं कि आप इतने भोले तो हैं नहीं. समीक्षा आप लोग बढ़ाने को तो करेंगे नहीं ज़रूर से ज़रूर घटाने को ही करेंगे. आप को कहना चाहिये था कि 100% का 100% भारतीयों के लिये आरक्षन रहेगा. और हर जात को आरक्षन मिलबे करि. भारत तो पूरा का पूरा गरीब, पिछड़ा हुआ है. इसमें सब ही तो पिछड़े, दलित और महादलित हैं. अत: ये अब कोई दलित रहेगा न महा दलित सब भारतीय हैं. पॉपुलेशन की गिनती दुबारा से कराए के पड़ि. तब तक न कोई क्रीमी लेयर न कोई नॉन क्रीमी लेयर. सब सपरेटा है.

और ये गाय-कुत्ता से ऊपर उठिये. ये गाय-बैल में कुछ नहीं रखा है सिवाय फज़ीहत के. कॉन्ग्रेस क्या पागल है जो अपना चुनाव चिन्ह गाय बछड़ा से बदल कर हाथ रखी है. जिसको गाय खाये के परि वो खाये और जिसे पालने का परि, माता मौसी बनाय का परि वो वैसी श्रद्धा रखे. ये स्टेट का टॉपिक ही नहीं. आप नॉन इशू को इशू बना दिये और इशू को नॉन इशू. आपके जितना नेता लोग लूज़ टॉक करते हैं सबको एक दिन बुलाकर कह दीजिये “ खामोश....जली को आग कहते हैं...बुझी को राख कहते हैं...” वगैरा वगैरा


आप सहयोगी दल भी तो ऐसे रखे कि लोग बाग हँसते थे. आप को क्या ज़रूरत आन पड़ी पासवान या मांझी जी की ?. आप वो गीत नहीं सुने हैं ? “मांझी जो नाव डुबोये.... तो कौन बचाये”. आप परधान मंतरी हैं आप को ये स्टेट के चुनाव में गली गली घूमना... पैकेज पर पैकेज एनाऊंस करना भाता नहीं है. तनिक इतिहास उठा कर देखिये तो सही, कोई और प्रधान मंत्री ऐसे किये रहा क्या कभी ?

अब कहा बताई. गलती तो आप कर दिये. एक ठौ बात तो आप गाँठ बांध लीजिये कि ये अमित शाह कोई सुपर स्टार नहीं हैं. ये इस सदी के महानायक भी नहीं हैं. महानायक का ? ये नायक भी नहीं. वो तो एक बार तुक्का लग गया... तो क्या बार बार लगी ?. इन्हें चलता कीजिये ! और कहिये अब आप ‘कुछ दिन तो गुजारिये गुजरात में’. अपने साथ कुछ पढ़े लिक्खे लोग रखिये. जानकार लोग रखिये, समझदार लोग रखिये. अब क्या हमारे मुँह से ही कहलवाई कि हमें रखिये

Thursday, October 29, 2015

व्यंग्य : छोटा राजन को लाने मैं भी जाऊंगा





जब फूलनदेवी जी ने आत्म समर्पण किया था तो पूरे का पूरा सूबा वहां खड़ा था. यहाँ तक कि प्रदेश के मुख्य मंत्री भी वहाँ थे. जब से पता चला है कि छोटा राजन पकड़ा गया...पकड़ाया गया...आत्म समर्पण किया है और वो भी बाली में तब से दिल्ली, मुम्बई में कूद-फाँद मची है. कौन कौन बाली जायेगा. चलो बुलावा आया है, भाऊ ने बुलाया है.


मैंने भी अर्ज़ी लगा दी है. भाऊ वास्ते खाऊ गल्ली की रगड़ा पैटिस, वडा-पाव, काला खट्टा, दाल भाखरी का ऑर्डर भी दे छोड़ा है. साथ ले कर जाऊंगा. मला मायत है भाऊ को क्या आवड़ता है क्या नहीं. इतने दिन से ऊट्पटांग फास्ट फूड खा-खा के सेहत बिगाड़ ली होनी है भाऊ ने. यह लेख लिखे जाने तक लिस्ट फाइनल नहीं हुइ है कि कौन कौन कितने मानुष बाली जाने की पैकिंग कर रहे हैं. फक़त मराठी मानुष जाणार या पर- प्रांतियों में से भी किसी का नम्बर लगेगा. मी मुम्बईकर (पिछले 15 बरस से) उस से पहले उत्तर भारतीय अत: दोनों कोटों में अपना चुना जाना नक्की है.


बाली पर्यटन स्थल है. बाली घूमना भी हो जायेगा. अब ये थोड़े है कि भाऊ एयरपोर्ट की लॉन्ज में होगा...ऑल रैडी बोर्डिंग पास ले कर तैयार. अरे जब बाहर गाँव से बाली आये हैं तो थोड़ा देखेंगे भालेंगे. स्टडी करेंगे कि बाली में ऐसा क्या है जो छोटा राजन वहाँ गया और पकड़ा गया. ताकि इंडिया के शहर या राज्य को हू ब हू वैसा ही बनाया जा सके. अपने राज्य यूँ भी चिल्ल पौं मचाते फिरते हैं... विशेष दर्ज़ा दो ....विशेष दर्ज़ा दो.  तो जाओ दिया. विकास पुरुष पंत प्रधान ऐसा विकास करेंगे ऐसा विकास करेंगे कि भाईयो और बहनों हर राज्य में एक एक बाली स्थापित हो जायेगा. इससे क्या होगा कि छोटा राजन जैसे देसी छोटे छोटे राजनों को एक आश्रय स्थल मिल जायेगा. फिर सरकार की मर्ज़ी पकड़े, छोड़े, सरंक्षण दे. छोटा राजन को शॉर्ट करो तो बनता है छोरा. प्रात: स्मरणीय माननीय नेता जी तो पहले ही कह दिये हैं “ लड़का लोग से गलती हो जाया करती है”


विषय से भटक न जायें इसलिये आपको वापिस बाली लिये चलते हैं. वहाँ के समुद्र तट, वहाँ के नृत्य, नाइट लाइफ. हम बाली से पर्यटन के क्षेत्र में बहुत कुछ सीख सकते हैं.  ऐसे में छोटा राजन सीखा-सिखाया हमें एक्स्पर्ट मिल रहा है अत: उसके तज़ुर्बे का फायदा उठाना है. इसे कहते हैं एफ.डी.आई. ( फॉरेन डाइरेक्ट इनवेस्टमेंट)  या ये पी.पी.पी. हुआ ? हमारे यहाँ पहले भी सर चार्ल्स शोभराज उर्फ बिकिनी किलर नामक एक पर्यटन विशेषज्ञ हुए हैं.


छोटा राजन या छोटा शक़ील से ये कदापि नहीं समझ लेना चाहिये कि ये किसी भी मामले में छोटे हैं. ये छोटा तो एक बड़े के लिये आदरसूचक के तौर पर रखा गया है. ये बेकार का विवाद है कि छोटा राजन को पकड़ना आसान था. जी नहीं. यदि ऐसा था तो पिछले 20 साल से क्यों नहीं ये आसान काम सम्पन्न हुआ. ऐसा कहना भाऊ के पुण्य प्रताप को, भाऊ के साहस, मान-सम्मान कीर्ति को, क्षमता को कम आँकना है. छोटे लोग, छोटी सोच. बड़ा सोचने का, बड़ा करने का. अब ये क्या बात हुई कि छोटा राजन को पकड़ना आसान दाऊद को पकड़ना मुश्किल. ये कम्पैरिजन क्यों. मैं महापुरुषों की ऐसी किसी भी तुलना के खिलाफ हूं. सबका अपना अपना रोल, अपना अपना क्षेत्र, अपनी अपनी तकनीक और थियेट्रिक्स होती है. सुल्ताना डाकू की तुलना डाकू मानसिंह से नहीं की जानी चाहिये. पुतली बाई अपनी जगह थीं फूलनदेवी जी अपनी. जब दाऊद जी इंडिया आ जायेंगे तो आप क्या कहेंगे ये तो आसान था अब जैक स्पैरो ( पाइरेट्स ऑफ कैरिबियन) को पकड़ के दिखाओ.


मैं भी क्या किस्सा ले कर बैठ गया.  अरे मेरा स्विम वियर कहाँ है .... ?


Wednesday, October 14, 2015

व्यंग्य: मेरा इनाम वापस लो...वापस लो


मैं बहुत बड़ा लेखक, कवि नहीं, न सही पर मुझे भी अधिकार है कि मैं यह मांग कर सकूं कि अपने जो भी इनाम वापस करना चाहूं कर सकूं और इस समाचार को हर बुलैटिन में चार- चार बार सभी चैनल दिखायें और मेरा इंटरव्यू लिया जाये. राजकपूर जी ‘श्री 420’ नामक फिल्म में अपना ईमानदारी का मेडल बेचना चाहते थे. मनोज कुमार जी फिल्म ‘रोटी कपड़ा मकान’ में इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति के पास अपनी कॉलेज की डिग्री टुकड़े टुकड़े कर देते हैं.

ज़माना तब से काफी आगे आ गया है. इनाम भी बढ़ गये हैं और लेने देने वाले भी. कुछ संस्थाओं का तो फुल टाइम जॉब ही यही है कि साल के तीसों दिन बारहों महीना खोद खोद कर प्रतिभाओं को ढूंढते फिरते हैं और नाईजिरियन्स की तरह अच्छा खासा खर्चा पानी ले कर फूलों का हार, एक अदद नारियल व शॉल और बस सम्मान समारोह सम्पन्न.

आजकल इनाम लौटाने की होड़ लगी हुई है. मैंने भी सोचा मेरे पास भी एक दो इनाम हैं भले साहित्य के न सही. दरसल मेरे इनाम आलू दौड़ और तीन टाँग की दौड़ के हैं स्कूल के टाईम के. आखिरकार इनाम तो इनाम हैं. और उन्हें वापस करने में मुझे वैसी ही गरिमा और प्रतिष्ठा का एहसास कराना सरकार का कर्तव्य है जैसा कि वह अन्य साहित्य रचयिताओं को करा रही है. प्राइम टाइम में इस पर बहस होनी चाहिये. मैं चाहता हूं कि पात्रा हों या गोस्वामी, रवीश हों या अभिज्ञान सब दो चार दिन गला फाड़ फाड़ कर मेरा ही ज़िक़्र करें. जो इनाम दे नहीं सकता वो इनाम लौटाने के महत्व और उसकी कीमत का अंदाज़ भी नहीं लगा सकता. 

ऐसे ही किसी कार्यक्रम में अगर मुझे स्याही से एलर्जी नहीं होती तो स्याही भी पुतवा लेता... मगर विडम्बना देखिये कालिख पोतने वालों को तो इनाम मिल रहा है मगर पुतवाने वाले को कुछ नहीं. यह सरासर बेइंसाफी है. मुझे तो सोच सोच कर ही कुछ ऐसा ‘फील’ आ रहा है जैसा कि उस चिड़िया को आ रहा होगा जो मकान में आग लगने पर चोंच में पानी भर भर के आग बुझाने का यत्न कर रही थी और लोगों के हँसने पर बोली “कल जब इतिहास लिखा जायेगा तो मेरा नाम भी आग बुझाने वालों में लिखा जायेगा न कि तमाशबीनों में”

एक और विचार मेरे मन में आ रहा है कि क्यों न कुछ साहित्य संस्थाएं मुझे इस शर्त पर कुछ इनामात दे दें कि मैं उनको एक आध हफ्ते में वापस लौटा दूंगा.

इनाम लौटाने के सुख की कीमत तुम क्या जानो रमेश बाबू !!

Saturday, July 18, 2015

व्यंग्य: " रेल में आपराधिक घटनाओं और वारदातों पर अंकुश लगाने केलिए हेल्पलाइन 1512 शुरू” --- एक समाचार


रेल ने सब कुछ कर के देख लिया अपराध हैं कि थम ही नहीं पा रहे हैं. चोरी चकारी. जेब कटी, धोखा धड़ी, टिकट चैक करने के बहाने टिकट ले उड़ना फिर आराम से उसका रिफंड ले लेना, सामान पार कर देना, तमंचा-कट्टा दिखा कर जबरन जेवर उतरवा लेना. आपके सामान की अलग से जांच करने के बहाने आपके सामन को पार करना, या फिर आप को कुछ पैसे धेले ले कर ही छोड़ना क्योंकि आपकी ट्रेन छूटने वाली है और अगला है कि उसकी जाँच खत्म ही नहीं हो पा रही. आप को बिना टिकट यात्रा करवा देना, अथवा सेकंड क्लास के टिकट पर फर्स्ट ऐ.सी. में सुलाना, या फिर ज़हरखुरानी गैंग द्वारा आपको बिस्किट और चाय के बहाने एक मीठी नींद सुला देना और आपके सामान को पार कर देना, डंडे से मुम्बई लोकल में आपका पर्स या मोबाइल नीचे गिरा लेना, प्लेट फॉर्म टिकट से आपको लम्बी दूरी की यात्रा करा देना, या फिर टिकट दिल्ली से गाज़ियाबाद का या फिर मुम्बई से सूरत का और उसी पर आपको आपके दूर तक के गंतव्य तक पहुंचा देना .बस आप तो यूँ समझिये कि
‘हरि अनंत हरि कथा अनंता’
अब इस हेल्प लाइन से भी अपराध पर अंकुश न लगा तो क्या करेंगे ? “ अब तो घबरा के ये कहते हैं मर जायेंगे, मर के भी चैन न पाया तो किधर जायेंगे ‘ बस ये सोच कर मैंने एक हैल्प लाइन चलाने की सोची है ..फर्क़ बस इतना है कि ये हैल्पलाइन जिसका नम्बर होगा 420 गुणा 4 = 1680. रेल कर्मी, दलाल, यात्री और अपराधी सबके बराबर बराबर 420 अत: 420 गुणा 4, इस पर जो सेवायें 24 X 7 उपलब्ध रहेंगी अब उनका भी थोड़ा सा ‘करटेन रेजर’ टाइप परिचय हो जाये...यह टोल फ्री सर्विस होगी
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1. जिस तरह स्टेशन की ग्रेडिंग होती है, ए, बी, सी, डी उसी तरह अपराधियों के गैंग की ग्रेडिंग होगी उसके लिये अलग से पी.पी.पी के तहत फॉर्म निकाले जायेंगे. एक बार कराया रजिस्ट्रेशन सामान्यत: 5 साल के लिये मान्य होगा. किंतु मैंनेजमेंट को यह अधिकार होगा कि वह बिना कोई कारण बताये किसी की भी मान्यता रद्द कर दे अथवा ग्रेडिंग में परिवर्तन कर दे.
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2. आप फोन करके पूछ सकते हैं और स्पॉट परचेज कमैटी की तरह आपका किस गाड़ी में किस क्लास में डकैती डालने की योजना है उस प्रकार से फीस जमा करा सकते हैं, इसके लिये सेकंड क्लास स्लीपर के चार्ज अलग होंगे और थर्ड ए,सी, फर्स्ट ए.सी. के चार्ज अलग. आखिर जो बंदा फर्स्ट ए.सी. से जा रहा है उससे अधिक माल मिलने की पूरी पूरी सम्भावना है. इस प्रकार की योजना में रिफंड का कोई प्रावधान नहीं होगा.
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3. हाकर्स और स्माल वेंडर्स की तर्ज़ पर जो हमारे लघु उद्यमी भाई हैं, जो अभी अपराध की एप्रेंटिस ट्रेनिंग पर जैसे कि असंगठित क्षेत्र के जेब कतरे बंधु, सामान के उठाईगीर भाई, आदि को कम रेट पर डेली पास की तरह डेली परमिट की सुविधा रहेगी. इज़्ज़त पास टाइप.
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4. हमारे कुली भाईयों के लिये विशेष योजना के तहत यह सुविधा रहेगी कि वे यात्रियों से मन मर्ज़ी से पैसे ले और अगर वो मुँह मांगे पैसे देने से इंकार करें तो ये कुली भाईयों का विशेषाधिकार होगा कि वे चाहे तो उनका सामान पार कर दें या फिर उनसे मरने-मारने पर उतारू हो जायें
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5. हमारे दलाल भाई, टिकट चैकर और काऊंटर क्लर्क को यह सुविधा दी जायेगी कि वे किसी भी रूट पर यात्री देख कर उनसे मनमाना किराया वसूल कर सकें.... रेलवे, इस राष्ट्र हित के कार्य में उनकी सेवाओं की अनदेखी नहीं करेगी बल्कि उन्हें हर प्रकार की सुविधाएं देगी ताकि वे अपना अपना टारगैट पूरा कर सकें. हम सब भारतीय, भारत माता के सपूत हैं...क्या फर्क़ पडता है कि रामलाल ने नहीं श्याम लाल ने यात्रा की. पैसा आखिर क्या है ? हाथ का मैल......दो पाँच सौ रुपये आपके सौजन्य से यदि हमारे टी.टी. अथवा दलाल भाई को मिल जायें तो क्या बुराई है. लोग तो पुण्य कमाने ...परोपकार के लिये न जाने कहाँ कहाँ की खाक छानते फिरते हैं.
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बाकी आप हमें हमारे टोल फ्री नम्बर पर मिसकॉल देंगे तो हमारा प्रतिनिधि आपसे स्वयं आपके अड्डे पर या जहां आप ‘ रंदेवू ‘ तय करेंगे आकर सहर्ष मिलेगा और आपको हमारी अन्य तमाम स्कीमों की बारीकियां समझायेगा. जिन्हें हम यहां गोपनीयता के कारण और स्पेस कम होने के कारण तफसील से नहीं दे पा रहे हैं. हम आपके लिये, आपके निजी हितों को ध्यान में रख कर और आपकी आवश्यकता अनुसार कस्टमाइज स्कीम भी तैयार कर सकते हैं
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आपकी सेवा में सदैव तत्पर ...... “ हमें कोई और नहीं....आपको कोई ठौर नहीं “

Thursday, July 9, 2015

व्यंग्य : ‘हेमा’ को नहीं कोऊ दोस गुसाईं


श्रीमती हेमा मालिनी उर्फ आयशा बी ने सही कहा है कि यह बच्ची के पिता की गलती है वह ट्रैफिक नियमों का पालन नहीं कर रहा था. सच है ! ट्रैफिक का बल्कि यूँ कहिये जीवन का पहला नियम यह है कि जब ड्रीम गर्ल, ड्रीम रन पर हैं तो अगला सडक पर निकला ही क्यों ?. आप पता लगाईये हो न हो ये कोई कॉन्ग्रेसी तो नहीं जो आपकी या बी.जे.पी. की या मोदी जी की छवि धूमिल कर रहा है.

मैं आपसे सहमत हूँ कि जब आपकी मर्सिडीज़ रोड पर थी और सौ से ऊपर की स्पीड में थी तो लडकी के पिता को और उसकी टुच्ची गाड़ी को सडक पर घुसने किसने दिया. बच्ची का पिता शुक्र मनाये कि आपने उसे जीवित छोड़ दिया नहीं तो ‘कुत्ते मैं तेरा खून पी जाऊंगा’ टाइप होते कितनी देर लगनी थी.
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चक्कर ये है कि आप सांसद हैं...सुंदर हैं... सत्तारूढ़ दल की हैं आपको आपकी पार्टी ने अभी न जाने कितने चुनाव क्षेत्रों में वोट के लिये ले जाना है. आपसे शोले फिल्म के डॉयलॉग बुलवाने हैं. लोगों ने ताली बजानी है. बार बार सुन कर भी ऐसे कि जैसे ज़िंदगी में पहली बार सुन रहे हों. फर्ज़ करो आप सांसद नहीं होतीं, न ही ड्रीम गर्ल होतीं. महज़ एक गर्ल आई मीन देश की करोड़ों नानियों जैसी एक नानी होतीं तो क्या होता आपके साथ ?. आप और आपका ड्राइवर उसका ड्रीम भी नहीं कर सकते. हमारी पुलिस को आप ऐसी वैसी फिल्मी पुलिस न समझें. हमारी पुलिस नानी को भी नानी याद दिला देने का माद्दा रखती है. अब तक तो उन्होंने आपकी रिमांड ले कर आपसे इक़बाल-ए-ज़ुर्म का हलफिया बयान भी ले लिया होता. मर्सिडीज़ ज़ब्त अलग कर ली होती. आगे-पीछे दो-चार केस और ठोक देने थे. आपने सुना नहीं ‘पुलिस आपके लिये... आपके साथ’ . आप शायद इसके गूढ़ अर्थ को नहीं समझीं.
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हाँ तो हेमा को नहीं कोऊ दोस गुसाईं. मैं तो कह रहा हूँ वो बच्ची पैदा ही क्यों की उसके माता-पिता ने. आप उस पर यही एक केस दायर कर दो. फिर बच्चू सब चौकड़ी भूल जायेगा. या कह दो कि वह आपको ऑटोग्राफ के लिये तंग कर रहा था और आपको ढूँढता फिर रहा था जैसे डायना के पीछे फोटोग्राफर लगे थे.
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और ये लूज़ टॉक कौन कर रहा है जी कि आपने सीट बैल्ट नहीं पहनी थी. पागल हैं क्या ये ?. मूर्ख कहीं के. सीट बैल्ट क्या ड्रीम गर्ल के लिए होती है. सीट बैल्ट क्या सांसदों के लिये होती है ? और तो और सीट बैल्ट क्या सत्ताधारी पार्टी के सांसदों के लिये होती है ? लोग-बाग कह रहे हैं कि आप तो एक्सीडेंट साइट से तुरत फुरत ही निकल लीं.अब आप भी क्या करें आपका वो डॉयलॉग किसे याद नहीं “ चल धन्नो ! आज तेरी बसंती की इज़्ज़त का सवाल है” और फिर सच तो यह है कि आपने कौन सा दौसा से या राजस्थान से चुनाव लडना है ? आप कृष्ण कन्हैया बंसी वाले की नगरी मथुरा की सांसद हैं. पाल्टी को ज़रूरत होगी तो झक मार के आप को दूसरी सीट, दूसरे राज्य से टिकट देगी. पारक्लाम !! टिकट काट भी देगी तो ..परवाइल्ला...
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वोटरों ने बीकानेर में ‘हीमैन’ देख लिये. मथुरा और दौसा में आप देख लीं. अब इस नश्वर जगत में देखने को और बचा ही क्या है ? पर फिर भी मुझे ऐसा क्यूँ लगता है कि मथुरा में आपकी लीला अब ज्यादा चल नहीं पायेगी. मथुरावाले तो पहले ही माथा पीट पीट कर रो रहे हैं. वे अर्थ ही नहीं समझ पा रहे हैं जब आप उन्हें बताती है कि :
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‘रहिमन कैंट का पानी राखिये...कैंट के पानी बिन सब सून...’
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वैसे यदि राजस्थान में आपकी पार्टी की सरकार नहीं होती तो आप इसे विपक्ष की चाल बता सकतीं थीं. आप इसे रोड की खस्ता हालत बता सकतीं थीं. षडयंत्र कह सकतीं थीं. थोड़ी पढ़ी लिखी होतीं तो इसे ‘विदेशी हाथ’ कह सकतीं थीं. मथुरा में कुछ काम किया होता तो “ माफिया मेरे पीछे पड़ा है ” ये कह सकतीं थीं. मीडिया को गरियाने से तो ये झुंड के झुंड और पीछे पड़ जाते हैं. जरा भी भरोसे लायक नहीं हैं. देवयानी चौबले के ज़माने से ये लोग भी बहुत तरक्की कर गये हैं.
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अगले चुनाव में अभी वक़्त है. तब तक नया चुनाव क्षेत्र..नये मतदाता..नये डॉयलॉग ...और लेटेस्ट तकनीक की नयी...... प्लास्टिक सर्जरी

Saturday, April 18, 2015

व्यंग्य : मेरा पिया घर आया...... .


अब तक छप्पन. हाँ छप्पन ! पता भी है तुम्हें ? छप्पन दिन और छप्पन रातें गुजर गयीं. कहाँ चले गये थे तुम ? तुम्हें जरा भी ख्याल नहीं आया मेरा ? सखी सहेलियां सच ही कहती थीं. तुम से दिल लगाना ही नहीं चाहिये था. कितनी पीड़ा कितना दुख देते हो. विपक्ष अलग ताने मार मार के मेरा जीना दूभर किये है. तुम्हें तनिक भी ख्याल नहीं आया मेरा. गाँव मोहल्ले में मेरा निकलना कितना दुष्कर हो गया था तुम्हें खबर भी है. किसी उत्सव किसी समारोह में जा भी न सकी मुझे ज्ञात है वहाँ भी शादी ब्याह छोड़ सब तेरा नाम ले कर मुझे छेड़ेंगे. वैसे छलिया ! ये तो बताओ चले कहाँ गये थे ? कोई चिट्ठी नहीं, कोई पत्री नहीं. न कोई संदेशा. कहां चले गये तुम्हारे वो हरकारे जो सदैव तुम्हें घेरे रहते थे. सुना वो अलग बौराये बौराये मुंह छुपाये छुपाये रात्रि में वन-वन डिस्को-डिस्को क्लब- क्लब, गो कार्टिंग कहां कहां नहीं तुम्हें पुकारा करते थे. हरज़ाई ! तुम्हें तनिक भी स्मृति नहीं हो आई इस विरहन की. मैंने भी न किस पत्थर दिल से दिल को लगाया.


तुम्हें पता है न जग की रीति ही यह है ..इधर तुम गये उधर सब ने न जाने क्या क्या अनर्गल प्रलाप प्रारम्भ कर दिया. कोई कहता तुम तपस्या कर रहे हो, कोई कहता तुम शुद्धि कर रहे हो. मुझे पता था मेरे नाथ मेरे रहते सन्यास का, तपस्या, साधना का कैसे सोच सकते हैं. क्या नाथ ! मुझसे उकता गये हैं. क्या कोई सौतन हमारे तुम्हारे बीच में आ गयी है. मुझे जरा भी भनक भी लगी तो मैंने शहर के सब बंगाली बाबाओं को बुला लेना है. वे नित्य प्रति समाचार पत्रों के माध्यम से मुझे आश्वस्त करते रहते हैं कि वे मुझे सभी दुखों से उबार लेंगे और कदापि खून के आँसू न रोने देंगे. तुम दो-चार दिन और नहीं आते तो मैंने उनकी शरण में चले जाना था ये जानने को कि हे निर्दयी ! तुम किस खोह, किस गुफा, किस पर्वत पर जा बैठे हो. हे युवा हृदय सम्राट ! तुम्हें मेरी कसम है सच सच बताना मुझ से कोई त्रुटि हुई क्या ? फिर ऐसे कैसे मुझ से विमुख हो बैरागी से हो गये. अब तुम आ गये हो तो मैं कल निर्मल बाबा के यहाँ धन्यवाद करने जरूर जाऊंगी. वैसे चमत्कार देख लो मैं निर्मल बाबा के दरबार में एक बार गयी कि तुम आन मिले. निर्मल बाबा को कोटि कोटि प्रणाम ! आज ही उनकी बताई मैकरोनी और पिज़्ज़ा बनाने हैं मैंने.


खाने-पीने का ख्याल रखा था तुमने ? . कौन बनाता था तुम्हारा खाना.? और कौन अपने नर्म ओ नाज़ुक हाथों से खिलाता था.? क्या वह मुझ से भी ज्यादा मान-मनौव्वल के साथ खिलाता या खिलाती थी ? मेरा मरा मुंह देखो अगर झूठ बोला तो...तुम्हें मेरे सर की कसम है.


अच्छा मज़ाक छोड़ो और ये बताओ कितने बिल फाड़े तुमने अपने अज्ञातवास में ? कोई नहीं, संसद के बिल नहीं तो होटल रेस्टॉरेंट के बिल ही बता दो. हे पाषाण हृदय ! तुम्हारे बिन सब महफिलें सूनी सूनी थीं. मैं तो जैसे सन्निपात से गुजर रही थी. मुझे अपना तनिक भी तो होश नहीं था. ऐसे ही दिनों दिन, हफ्ते दर हफ्ते अस्त व्यस्त पड़ी रहती थी. कितनी बार कोई कोई आकर देखता मैं ज़िंदा भी हूं या नहीं. तुम भी न ये किस जनम का बदला ले रहे थे जो मुझे इन वृद्धों की संगत में छोड़ गये. कहने को इनके पाँव क़ब्र में लटके हैं मगर ये सब कपटी, लम्पट कहीं के. सब अपनी अपनी बयान बाजी में लगे रहते और येन प्रकरेण मेरे निकट आने के उपक्रम करते रहते. तुम्हारे बारे में भी प्रेस में न जाने कितनी कितनी भ्रांतियां फैलाते रहते थे. पर मुझे विश्वास था मेरा खेवनहार ज़रूर आयेगा.


मैंने इनकी हर बात को एक कान से सुन दूसरे से निकाल दिया. कोई कहता तुम अवकाश पर हो. कोई कहता तुम आत्म चिंतन कर रहे हो. कोई कहता तुम सौतन के पास गये हो. कोई कहता तुम इतने प्रचार और सभाओं को सम्बोधित करते करते विश्रांति के चलते तनिक थकान उतारने को आमोद-प्रमोद में आकंठ डूबे हो. कोई कहता अब हृदय सम्राट क्या ? तुम युवा ही नहीं रहे. ये मूर्ख हैं ! जानते ही नहीं तुम तो चिर युवा हो .....और मैं तुम्हारी चिर तरुणी.

तुम्हारी अपनी
कांग्रेस

Thursday, January 1, 2015

AN APOLITICAL OPEN LETTER

No doubt Modi sir you are a Maananeey Maanash—Hon’ble man !
You promised us moon
You actually took us to mars
@ Cheaper than auto fare
You indeed are a Hon’ble man
You promised us 3 Cs Cleansing
Coordination and Cooperation
Hon’ble man that you are
You delivered 3 Cs to us
Conversion, Construction (of temple...What else)
And Congress mukt Bharat
You, no doubt are a hon’ble man
You promised us 4 Bs Black money, Business Opportunities,
Boldness at borders and Bhartiya mouse (hiss! no snakes)
We hear! We did get close, very close to Black money
In fact, per capita allocation to each Indian was also worked out
But suddenly the trail went cold
Black money..? How much...? Where...? When...? Who...?
Well ... Ahem!
May be next time, got to trust you
Every one assures, Modi is a hon’ble man
Make in India
What...? err...just about everything
Hinduism to Saffronisation to Ramzade
God worshipers to Godse worshipers
Temples and Togadias
Sadhvi to Sakhshis
3 Rs Ram to RSS to Ramdev
2As Adanis to Ambanis India is one
The tea delivery boy of Badgam Railway Station has arrived
You promised us 3 Ts
Transport, Tourism and Toilets
We are hearing that instead we are getting
PPP, FDI and Jan Dhan bank account
Without dhan, of course!
You abhor the idea of Committee working
For the delay it breeds
Hon’ble that you are it is surprising that no one
From your Think Tank briefed you –
“..More you change things...more they tend to remain the same...”
I bet Railway minister won’t remember
How many committees have come?
To be set up under his wings
From mobilizing finances to ensuring transparency
From restructuring to E tendering
Restructuring is the latest buzz word
Restructure just about everything you cast your eyes at
After all you are committed to provide us Congress mukt bharat
So design, destroy and destruct all things Congress
(Did I just give you a new 3 D?)
Hon’ble sir!
A voter... An average Indian...A babu...A labor...A farmer...A daily wager
A Chaiwala all are exclaiming
Hey gujarati nathi ! Hey maate vote nathi
Honeymoon is over
Now shall we get to the humdrum of domestic chores?
Let us get to kitchen
In the home called India
We got to feed so many mouths
All are waiting eagerly and are getting bored of
2 Ts, 5 Cs, 3 Ps and 4 Qs
All are asking each other expectantly
What is the gestation period?
Haven’t we have had enough of baby showering events
And debate on labor pains already
Now where is that elusive 1D?
Delivery...! 



P.S. a piece of small unsolicited advice reg your detractors sir! Jaadugar nu jeev popat ma chhe, popat nu kaabu ma kari shu to jaadugar aapoaapaj kabu ma aavi jaashi