Ravi ki duniya

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Sunday, August 31, 2014

व्यंग्य : मुझे भी...भारत रत्न....दिला दो ....

आजकल दिल में एक धड़का सा लगा रहता है कहीं कोई मेरे से बदला लेने के लिये मुझे भारत रत्न दिलाने की बात न छेड़ दे. बात छेड़े तो छेड़े, कहीं आंदोलन ही न छेड़ दे. आपको तो पता ही है इधर आंदोलन छिड़ा नहीं और उधर कितने ही लोग इसमें आ कूदेंगे. भीड़ का एक भभ्भड़ सा जुट जायेगा जंतर-मंतर पर. आनन फानन में कोई मरणासन्न बूढ़ा या मोटा-ताजा ब्लॉक स्तर का युवा नेता आमरण अनशन की घोषणा कर देगा. मैं भला क्या बिगाड़ लूंगा उसका ?. टी.वी. का सा माइक पकड़े-पकड़े लड़के-लड़कियां अलग भागते डोलेंगे मेरे पीछे-पीछे.

“..यही है उस गुमनाम हिंदी के महान जीवित ‘साहितकार’ का गुमनाम सा मकान..शहर से दूर..बस्ती से दूर...देखिये कैसे इस घर की दीवारें बोल रही हैं जबकि अंदर घर में चारों ओर सन्नाटा पसरा पड़ा है या सन्नाटा बोल रहा है...और हो भी क्यों न..”

मुम्बई कोलकाता जैसे महानगरों में मोमबत्ती बेचने वाले और ‘लेडिस’ लोग अलग तैयार बैठी हैं कि कब वे मोमबत्ती जलायें और टी.वी. पर ‘लाइव’ कवरेज मिले.

पीछे जब नाम आमंत्रित किये गये थे तो चयन समिति के भाई लोगों ने बेशरमी से अपनी अपनी पत्नी के, अपने अपने सुयोग्य पुत्र पुत्रियों के नाम तक की अनुशंसा कर दी थी. सच ही तो है ‘चैरिटी बिगिन्स एट होम’ नहीं तो कहावत झूठी न पड़ जाती.

अब फर्ज़ करो मुझे अपने लख्ते जिगर के लिये सिफारिश भेजनी हो तो आसान था. अपने लिये सफेद झूठ बोलना शुरू शुरू में थोड़ा मुश्किल मालूम देता है. ज्यादा प्रैक्टिस भी तो नहीं. फिर भी कोशिश करता हूं. भूल चूक लेनी देनी.

आदरणीय गृह मंत्री जी

मैं भारत का एक अदना सा नागरिक हूं. आप ‘हिंदू’ कहो या ‘हिंदी’ या ‘अलपसंख्यक’ मैं तो न जाने कब से अपने आप को कलप संख्यक मानता हूं. सभी छोटी छोटी चीजों के लिये कलपना पड़ता है. मेरे जैसे इस देश में बहुत से कलप संख्यक हैं. दरअसल इस देश में हम कलप संख्यक ही बहु संख्यक हैं. कहीं इस पचड़े में मुद्दे से न भटक जायें अत: आगे बढ़ते हैं. तो जी ! मैं बड़ा ही शांति प्रिय जीव हूं. हमेशा ट्रैफिक पुलिस को भी कमिशनर पुलिस समझता हूं और वैसी ही इज़्ज़त देता हूं. जब जितने पैसे उसने ट्रैफिक सिगनल पर, रोड ब्लॉक पर या फिर फ्लाई ओवर पर मांगे मैंने बगैर चूं चां किये दे दिये. रही बात इनकम टैक्स की तो जी उसकी तो कोई बात ही नहीं है, इनकम हो न हो ये बैरी ऑफिस वाले सीधे सीधे काट लेते हैं. तनिक भी कोताही नहीं बरतते. सच पूछो तो जितना खर्चा पानी भारत रत्न बनवाने में आयेगा उससे कई गुना अधिक इनकम टैक्स मेरे खाते में जमा हो गया होगा अब तक.

मैंने कोई हील हवाला नहीं किया. सब्ज़ी आपने जिस भाव बेची मैंने उस भाव खरीदी. दूध गाय का, भैंस का, बकरी का या फिर कैमीकल का जिस भाव बिका मैंने उस भाव खरीदा है. और सदैव इतने चाव से उसकी कीटनाशक मिली चाय पी है कि इतने चाव से तो द्वापर में कन्हैया ने लस्सी न पी होगी. पेट्रोल, गैस, प्याज, टमाटर जब जितने कहे उतने पैसे देकर खरीदा है मैंने. कभी आंदोलन करना या आंदोलन करने की धमकी तो दूर, उसकी सोची भी नहीं मैंने. हर बार, बार बार टोल टैक्स, रोड टैक्स दिया है. मल्टीप्लैक्स लोटा भर पानी ढाई सौ रुपये में बोतल में डाल कर बेचते हैं तो मैंने खरीदा भी है. और तो और पाँच सौ रुपये का बर्गर भी खाया है मैने. ये सोच सोच के कि ‘के पता ! इसी मेरे पैसे का इस्तेमाल देश निर्माण में हो रहा होगा’. मैं नित रोज़ भारत की पावनभूमि पर ठगा जाऊं हूं. आपको तो बेरा कोई नी ?. बेरा हो भी कैसे ? मैंने कभी शिकायत तो दूर उफ तक नहीं की. पैसे दूने करने वाले, अफ्रीका में मेरे लिये लाखों डॉलर बैंक में छोड़ के मरने वाले या बस मरने को तैयार बैठे लोग, सोना चमकाने वाले, चेन झपटने वाले, गंडा तावीज वाले जो मुझे गारंटी देते हैं कि खून के आँसू से कतई न रोने देंगे. और सिवाय बंगाल के हर जगह पाये जाने वाले बंगाली बाबा जो 24 घंटे में मेरे सारे दुख और पैसे हरने को मुझे टेर टेर के बुला रहे हैं.

मैं इस मँहगाई के दौर में बच्चों को पढ़ा रहा हूं और जहां ज्यादा पढ़ गये हैं उन्हें वापिस ‘लाईन’ पर ला रहा हूं. अब भला आप ही बताओ ! है कोई बहादुर जो आपके इस भारतरत्न का मुझ से अधिक लायक हो ?. अब अगर मैं चूक जाऊं तो जी इसी बात मैं चूक सकूं हूं कि मेरे पास ले दे कर एक ही सेलेरी खाता है. ऑफिस की तनख्वाह उसी में जाती है और पूरा घर उसी में से खाता है . उसके अलावा दूसरा खाता न तो स्विट्ज़रलैंड में है न और किसी ‘लैंड’ में. मेरी जानकारी में कोई एम.पी., एम.एल.ए भी नहीं है जो मेरे हक़ में सिफारिश के दो हरफ मुफ्त में लिख दे. क्रिकेट खेलना तो दूर मैने तो उसकी कमेंटरी भी नहीं देखी कभी, न मैं आपके लिये वोट बटोर सकूं हूं. मैं तो हद से हद अपना वोट आपको दे सकूं हूं उसमें भी अभी पाँच साल हैं. जितने वेतन आयोग बनते गये मैं उतना ही तन-मन-धन से बे-वेतन सा होता गया हूं

इब आप ही सोचो इतनी विकट परिस्थिति में भी मैं ज़िंदा हूं और ज़िंदा ही नहीं खुशहाल होने की कित्ती अच्छी एक्टिंग भी कर रहा हूं. भला इससे बढ़ कर भारतरत्न के लिये आपको और क्या क्वालीफिकेशन दरकार है ?. अब एक मेडल के लिये छोरे की जान लोगे क्या ? मैंने भी ठान ली है इब के बरस आपने भारत रत्न नहीं दिया तो मैंने हलफनामा दे कर अपना नाम बदल कर भारत रत्न ही रख लेना है. बस यही डर है कि हलफनामे का स्टाम्प पेपर श्री श्री आदरणीय तेलगी जी के छापेखाने वाला न हो दूसरे उस कोर्ट के धौरे न जाना पड़ जाये जहां मी लॉर्ड घर पे अकेले में बुलाये हैं.

लौटती डाक से खबर देना जी, नया कुर्ता पायजामा सिलने देना है. थोड़े लिखे को बहुत समझना. लिखने वाले की बाँचने वाले को राम राम