Ravi ki duniya

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Tuesday, July 29, 2014

व्यंग्य : चौकड़ी बंद..... ….चौपड़ी शुरू



 ( एक समाचार--- आर.पी.एफ. वालों को 'यात्रियों से कैसे बरताव किया' जाये ऐसी पुस्तिका दी जायेगी)

चौकी वालो ! चौकस हो जाओ ! चौ तरफा धूम है.. चौपड़ी की. आर.पी.एफ. वालों ने ये तय किया है कि एक चौपड़ी निकाली जाये जिसमें तफसील से ब्यौरा होगा कि आपको यात्री और यात्रिनों से कैसे बात करनी है. व्यवहार करना है. मसलन अब आप डंडा घुमाते हुए ये न कहें कि “ ऐ ऐ कहां जा रहा है ? इस सूट्केस में क्या लिये जाता है..बड़ा भारी है... अपना बैग तो बता जरा खोल के” और ये कहते कहते एक हाथ से डंडा घुमाते हुए आपका दूसरा हाथ उसकी जेब में. “अरे भाई तलाशी लेनी है कि नहीं. मेटल डिटेकटर तो ससुरे सब के सब खराब पड़े हैं. न जाने कौन सी कम्पनी के लिये हैं. बस उद्घाटन वाले दिन तो खूब पीं पीं कर रहे थे..लाइटें भी जलें थीं.. वो दिन है और आज का दिन है. ऐसा लागे है घर की चौखट निकाल कर यहां फिट कर दी हो बस.” 

अब आप कहेंगे “हे भद्र पुरुष” ! अथवा “हे आर्य पुत्र ! कुत्र गच्छामि ? कहां जाते हो ? हे मुसाफिर ! ये दुनियां तो एक बहुत बड़ा मुसाफिरखाना है. आज तुम्हारी कल हमारी बारी है. जरा अपनी इस नश्वर सम्पति में से कुछ समाज में बाँट कर अपनी यात्रा सुखद बनाओ और अपने लिये स्वर्ग का मार्ग प्रशस्त करो. आपने सुना नहीं ट्रेवल लाइट रेलवे ने हमारी ड्युटी यही सुनिश्चित करने को लगाई है” मुझे आशा ही नहीं पूरा विश्वास है विरला ही कोई यात्री होगा जो आपसे सहयोग नहीं करेगा. आखिर वह यात्री है, यात्रा को आया है उसे आपके हाथों अपने मान-सम्मान की अंतिम यात्रा थोड़े निकलवानी है.



अब आप आर.पी.एफ. में हैं तो ये मुक़द्दस किताब रेलवे के पवित्र प्रांगण में ही पढ़ी जायेगी और लागू होगी. अत: आप खुल कर रेलवे के सीमावर्ती और समीपवर्ती क्षेत्र में जम कर लाठी भांज सकते हैं. अधिकृत-अनाधिकृत दोनों जात के हॉकर्स, टिकट वाले तथा डब्लू.टी. यात्रियों,दोनों से एक सा समदर्शी सद्व्यवहार, ऑटो वालों, टैक्सी वालों, भिखारी, स्मगलरों, चोर-उचक्के, ड्रग्स वाले, सीट-बर्थ दिलवाने वालों से आपके मित्रवत व्यापारिक सम्बन्धों पर किंचित भी कुप्रभाव नहीं पड़ेगा. दास कैपीटल, सोशल कॉन्ट्रेक्ट के अलावा कोई भी किताब इंसान द्वारा अभी तक ऐसी नहीं लिखी गई जिसे पढ़ कर मनुष्य द्वारा समाज की संरचना में मूल चूल तब्दीली आई हो या पढ़ कर पाठक का हृदय परिवर्तन हो गया हो. अत: आप इसे पढ़ कर उसी तरह भुला दें जैसे यात्री आप से मिल कर उसके बाद अपनी पकड़े जाने की व्यर्थ की चिंता को भुला देता है. आप ज्ञानी हैं. आपने तो सुना ही है :


         “ पोथि पढ़ पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय

           ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय”


अब जबकि समाज के हर क्षेत्र में क्रांति हो रही है तो आपके यहां भी क्रांति जरूरी है. अत: कोई अपना दिमाग चला रहा होगा कि कैसे ये क्रांति लाई जाये. चूँकि क्रांति के अन्य तरीके टाइम कंज्युमिंग, खर्चीले और काऊंटर प्रोडक्टिव हैं चुनाँचे किताब लिखना सबसे ईजी है. अब पढ़ना और अमल में लाना आपका काम है. आँकड़े बताते हैं कि 396 रक्षक आरोपित हैं और इसमें से 92% दंडित हैं. कहते हैं न जीवन चलने का नाम... चलते रहो सुबहो-शाम. अत: जब आपने एक कंधे पर 1857 के ग़दर के टाइम की बंदूक और दूसरे कंधे पर रेलवे की सम्पति की रक्षा का गुरूत्तर भार लिया है तो निभाना तो पड़ेगा. अब देखो इस नाशुक़्री पब्लिक को आपका कुत्ता जरा ऐ.सी. में बर्थ पर क्या सो गया यात्रियों ने भों भों करके बावेला मचा दिया. इन्हें ये नहीं पता कि आपके हाथ और आपके श्वान के दांत कितने लम्बे होते हैं. 


हाँ तो ऐसी किताबों से आपको घबराने की, कोई टेंशन लेने की ज़रूरत नहीं है. अव्वल तो कोई यात्री आपको किताब की याद दिलायेगा नहीं अगर हिम्मत करके दिलाये भी तो उसे दो डंडे जमा दें ..उसका सामान तलाशी के बहाने पार कर दें और इनोसेंटली कह दें “ किताब ? कौन सी किताब ? अरे बावले मैं तो पढ़ा लिखा ही नहीं हूं. पढ़ा लिखा ही होता तो क्या इसी नौकरी में आता ?”


          “ मुलगा शिकला नाहिं

            प्रगति झाली नाहिं”


अग़र ज्यादा चूँ चाँ करे तो कह दें कि किताब अभी अंग्रेजी में निकली है उसका हिंदी.. मराठी.. गुजराती आदि आदि भाषा में अनुवाद हो रहा है जब आयेगी तब देखा जायेगा. कहते हैं किताब में यात्रियों का दिल जीतने के तरीके संवाद दिये गये हैं अब सोचो भला ! आपको इनकी क्या ज़रूरत ? आपने कौन सा इन यात्रियों को डेट पर ले जाना है ? आपकी डेट होती भी है तो ब्लाइंड डेट होती है. रही बात दिल जीतने की तो जी इतने बड़े कवि, महाकवि  तुलसीदास कह गये हैं :


          “ भय बिनु प्रीत नाहिं गुसाईं..”


तो कॉलर पकड़ कर झन्नाटेदार लापा लगाईये या दो डंडे जमाईये फिर देखिये कैसे प्रीत की बारिश होती है. अगला तन-मन-धन से आपका हो जायेगा. जैसे मछली को कोई तैरना नहीं सिखाता. वो कोई किताब नहीं पढ़ती. उसी तरह आपको ये सिखाने की कोई दरकार नहीं कि आप यात्रियों से कैसा बर्ताव करें. सच तो यह है कि ये इंडिया है दोस्त ! यहां यात्री स्वयं आपको सिखा देते हैं कि आप उनसे कैसा बर्ताव करें.