Ravi ki duniya

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Monday, March 26, 2012

भारतीय रेल का पुनरुत्थान – एक चिंतन वज़न कम करें अथवा यही आपको ले डूबेगा


पहले तो मैं चाहूँगा कि बजाय रिजरक्सन के, रिजुवेनेट शब्द का प्रयोग अधिक प्रांसगिक रहेगा कारण कि रिजरक्सन तो मृत का होता है और अभी रेलवे ज़िंदा है अतः ज़रूरत इसे रिजुवेनेट करने की है. माननीय रेलवे मंत्री महोदय ने पिछले दिनों यह कहा कि वे रेलवे को आई.सी.यू. से बाहर निकाल कर लाये हैं और वे नहीं चाहते कि भारतीय रेलवे एयर इंडिया बन जाये. सच है यदि समय रहते प्रयास नहीं होंगे तो ‘डिसइनवेस्ट्मेंट’ और रेलवे को प्राइवेट करने वाली लॉबी टकटकी लगा कर देर से इसे घूर रही है. कोई भी प्राइवेट एंटोप्रॉअनर प्रॉफिट के लिये ही फील्ड में आयेगा. उनके शब्द्कोष में प्रॉफिट डर्टी वर्ड नहीं है. जिस तरह ‘वेलफेयर’ की कोई सीमा नहीं होती उसी तरह ‘प्रॉफिट’ की कोई सीमा नहीं होती है. अधिक से अधिकतर है तो ..बेहतर से बेहतर है.


जब किसी भी संगठन में खर्चे कम करने की बात की जाती है तो उसकी गाज कर्मचारियों पर गिरती है. एक कहावत है कि आप आने वाले कल की लड़ाई बीते हुए कल की तकनीक से नहीं जीत सकते. वर्तमान में प्रति वर्ष लगभग 15,000 रेल कर्मी रिटायर हो रहे हैं. जबकि मैंन पॉवर उस रेट से नहीं आ रही है. इसलिये यह जरूरी है
कि :




1. ऑफिस की विभिन्न प्रक्रियाओं को सरल बनाया जाये.


इस एरिया में सुझाव यह हैं कि ‘एक डैथ एक नौकरी’ के नियम को पूरी तरह मान्यता देते हुए इसे प्रमुखता से प्रसिद्ध किया जाये. प्रक्रिया सरल होगी तो समय की बचत होगी, और मैंन पॉवर जल्दी उपलब्ध हो सकेगी. आप चाहें तो भले इसके लिये परीक्षा आर.आर.बी के स्तर की रखी जा सकती है और उसे कर्मचारी की सी. आर से लिंक किया जा सकता है. यह सुविधा ‘मेडीकली अनफिट फॉर ऑल कैटेगरी’ को भी दी जा सकती है. सी.आर. के केस में भी केवल दो ही कॉलम रखे जायें ‘फिट फॉर प्रोमोशन’ ‘नॉट फिट फॉर प्रोमोशन’ क्या ज़रूरत है पांच-पांच कॉलम रखने की जब अगले ने देनी बौद्ध् धर्म के मध्यम मार्ग की तर्ज़ पर सबको ‘गुड’ ही है.


2. रेल कर्मियों को मल्टी-टास्किंग में न केवल ट्रेन किया जाये बल्कि उन्हें इन क्षेत्रों में जाने के लिये ओरियंट भी किया जाये. यथा सभी ग्रुप डी को जरूरी तौर पर वैहीकल ड्राइविग की ट्रेनिंग दी जाये. ऑफिस के दूसरे गैजट्स जैसे फैक्स, फोटोस्टैट, प्रारम्भिक बिजली के यंत्रों की रख-रखाव के एरिया में ट्रेनिंग देना


3. मशीनों पर निर्भरता अधिक से अधिक होती चली जायेगी इसलिये अभी से इसकी आदत डालना शुरु कर दें. जैसे ऑफिस के बहुत से पत्र व्यवहार ई मेल, लैन, कॉन्फ्रेंसिंग, पैन ड्राइव, के माध्यम से. फोन, मोबायल, एस.एम.एस का अधिक से अधिक प्रयोग.
4. ऑफिस रिकॉर्ड जिस हालत में रखा जाता है हम किसी से छुपा नहीं है. इसलिये बेहतर होगा कि हम उपनिवेशवाद की मानसिकता से ऊपर आयें और कर्मचारियों पर विश्वास करते हुए उनको ही ये जिम्मेदारी दे दें कि वे अपना तमाम रिकॉर्ड रखें. आखिर उनसे बेहतर उसका रक्षण और अनुरक्षण कौन कर सकता है. इसी दिशा में लीव की पासबुक और टच स्क्रीन का इस्तेमाल व्यापक तौर पर किया जा सकता है.


5. यह साढ़े नौ से छह बजे की नौकरी का कंसेप्ट पुराना हो गया है..नया ज़माना फ्लेक्सी ऑवर्स का है. पी.सी. घर-घर में हैं...आप नियत काम नियत समय सीमा में पूर्ण करने की शर्त के साथ...स्टाफ पर थानेदारी वाली मानसिकता त्याग दें क्यों कि वे आपको अन्यथा और तरीकों से नज़र बचा कर कामचोरी करेंगे.


6. सभी को ट्रेनिंग कम्पलसरी होनी चाहिये और इस प्रकार सभी स्टाफ को अपने कार्य के अलावा एक अन्य कार्य क्षेत्र की ट्रेनिंग भी दी जानी चाहिये और इस दिशा में वह अपनी रुचि और प्रतिभा से ट्रेनिंग ले सकेगा.


7. आपको अपने ही कर्मचारियों पर विश्वास करना होगा..हमेशा हमेशा उन पर अविश्वास की विरासत हमें अंग्रेजों से मिली है. कारण कि वे कभी भी हिंदुस्तानियों पर विश्वास नहीं जमा पाये थे. न प्रशासन में न राजनीति में न फौज़ में. अत: मक्खी पर मक्खी न मारते हुए हमें एजूकेशन ग्रांट आदि अनेक प्रक्रियाओं का सरलीकरण करते हुए उसे वेतन के साथ लगा देना चाहिये. इसी प्रकार रेल कर्मी को यह छूट होनी चाहिये कि वे चाहें तो अपना इलाज़ प्राइवेट में करा लें और डाइरेक्ट अस्पताल को आप रिम्बर्समेंट कर दें. आज भी कहा तो यही जाता है कि रेलवे अस्पताल तो केवल यूनियन के लोगों और बड़े बड़े ऑफिसर्स के लिये ही है.


8. प्रॉफिट सेंटर का एक कंसेप्ट प्राइवेट में चलता है जिसमें हर यूनिट हर कर्मचारी एक प्रॉफिट सेंटर होता है उससे यह अपेक्षा होती है कि वह न केवल अपनी पगार कमायेगा बल्कि साल के अंत में उसका यह ऑडिट भी किया जाये कि उसने ऑर्गानाइजेशन को कमा कर कितना दिया. हमारे यहां भी रेलकर्मी को यह टारगेट दिया जा सकता है.


9. सेफ्टी पोस्ट के भूत से बचने के लिये यह ज़रूरी है कि इस पर एक रिव्यू किया जाय कि ये यार्ड स्टिक आखिर है क्या. अब इनफॉरमेशन, टेक्नॉलोजी और जनरल एजुकेशन बढ़ जाने से यह जरूरी हो गया है कि हम बजाय क्वांटिटी के क्वालिटी पर कंसंट्रेट करें. इसके लिये बहुत से टफ फैसले भी दरकार होंगे जिसके लिये आपको यूनियन से पूरी मदद लेनी होगी और उसके लिये आपको अपना एज ओल्ड आइडिया त्यागना होगा कि यूनियन टांग अडायेगी ऐसा नही है. बहुधा देखा यह गया है कि मैंनेजमेंट वाले ही ज्यादा दकियानूसी निकलते हैं . आप एक बात समझ लें कि यदि आप यूनियन को बुरा समझते हैं तो यूनियन का न रहना और भी ज्यादा बुरा होगा, दोनों के लिये ऑरगानिजेशन के लिये भी और आपके लिये भी.


10. एक नियम है जिसके अंतर्गत यदि कोई भी पद एक सीमा से अधिक खाली रहता है तो वह स्वत: ही समाप्त मान लिया जाता है. यदि उसे भरना है तो पहले उसे जीवित करना होता है जिसकी लम्बी और क्लिष्ट प्रक्रिया है. उसी तर्ज़ पर सीधी सीधी बात है कि यदि आप बिना उस पद के भरे हुए काम चला सकते है तो सदैव क्यों नहीं. एक इस नियम को सख्ती से लागू करने मात्र से आपकी मैन पॉवर काबू में आ जायेगी.


ऐसा हो सकता है कि आप ये सुझाव बहुत ‘सिम्पल’किस्म के और छोटे-छोटे लगें. एक बात है बड़े-बड़े फैसले आप लेने से बचते रहेंगे और छोटे फैसलों को छोटे कह कर टालते रहेंगे तो फैसले लेगा कौन. एक थानेदार जब किसी की मृत्यु पर गांव गया तो लगा खूब मिठाई खाने, किसी ने टोका तो उसका कहना था कि “ वाह बेटा खुशी के मौके पर तुम मुझे बुलाओ नहीं और ग़म के मौके पर मैं नहीं खाऊं तो मिठाई मैं खाऊंगा कब ? वह पल जब आपको फैसला लेना है वह अब है अन्यथा भविष्य में आप भी इल्ज़ाम से बच नहीं पायेंगे. अगर अच्छे मैंनेजमेंट के लिये हम सभी क्रेडिट लेने को टूटे पड़ते हैं तो मिसमैंनेजमेंट के लिये कोई और क्यों आयेगा..यूं लगाने को आप किसी पर भी आरोप लगा सकते हैं.होगा भी यही यूनियन कहेंगी मैंनेजमेंट की ग़लती है और मैंनेजमेंट तो बहुधा कहती ही है कि यूनियन न होती तो वे तारे तोड़ कर ला सकते थे, कृपया याद रखें कि कोई भी सदैव न तो आई.सी.यू. में रह सकता है और न ही अस्पताल में रहना चाहता है. हम सभी अस्पताल से जल्दी से जल्दी बाहर आना चाहते हैं और वो भी स्वयं के पैरों से चल कर.