Ravi ki duniya

Ravi ki duniya

Wednesday, January 13, 2010

पंखुरियां गुलाब की

किसी भी राह की मंजिल नहीं यहाँ
किस पथ पर अपने पाँव बढाऊँ
यहाँ का चेतन भी जड़ हो गया है
अपना दर्द सुनाने  किसे जगाऊँ
कोई नहीं आराध्य किसके आगे
अपने को छोटा बताऊँ
कहा बड़ों ने सन्मार्ग पर मंजिल मिलेगी
किन्तु पाया मैंने कु-पथ पर लक्ष्य को समीप
जिसको भी सुनाई मैंने अपने व्यथा
सामने मेरे दुःख जता बाद मैं हँसा
इसलिए मैं जड़ से कहता हूँ
अपने आत्मकथा
वो जो जगत मैं है आराध्य
मैं नहीं उसकी भक्ति को बाध्य
कैसे मैं विश्वास करूँ
मैं साधन हूँ और वो साध्य
उनके आदर्श नहीं मेरे अनुकरण के लिए 
उनकी भावना नहीं मेरे वरण के लिए 
मेरे पास स्थान नहीं 
उनके विचारों की शरण के लिए 
फिर किसकी करूँ निंदा 
किसकी महिमा गाऊँ 
किसी भी राह की मंजिल नहीं यहाँ 
किस पथ पर अपने पाऊँ बढाऊँ  

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