Ravi ki duniya

Ravi ki duniya

Tuesday, January 12, 2010

मछर की डेंगी उर्फ़ नौटंकी

-->

हमारा देश एक नौटंकी प्रधान देश है। हमारे यहां नौटंकी की एक दीर्घ परम्परा है। गाँवों में, कस्बों में, नगर नगर तथा महानगरों में भी यह विद्यमान है। जैसे बौद्घ धर्म, योग आदि भारत से पलायन कर विदेश में फले फूले हैं उसी तरह नौटंकी गाँव कस्बों से पलयान कर अब महानगरों में आ गई है। जिसे वॉव ! वॉव ! कहके संभ्रांत शहरी देखते हैं। और ‘एथनिक' होने का लुत्फ वीक एंड में उठाते हैं।


पिछले दिनों डेंगी ने कसम उठाई कि हम आदमी को जीने नहीं ‘डेंगी'। बस तबसे अफरातफरी मच गई। नाना पाटेकर ने तो महज़ हिज़ड़ा बनाने की बात कही थी। यहां तो मच्छर आदमी लोक को परलोक भेज रहे हैं। तभी एक विचारवान नेता या शायद नेती को यह चमत्कारिक आइडिया सूझा क्यों न मच्छर का पुतला जलाया जाए। और लो जी आनन फानन में भीड़ जुटाई गई। प्रेस विज्ञप्ति,चैनल, मीडिया, फोटोग्राफर सभी की उपस्थिति में (इनकी उपस्थिति अनिवार्य है, नहीं तो हम नहीं खेलेंगे हां !) मच्छर का पुतला जलाया गया। चलो जी निश्चिंत हुए। वैसे ही जैसे रावण का पुतला जला कर हम पिछले कितने सालों से रामराज ला रहे हैं। राम को तारणहार यूं ही नहीं कहा गया। आज भी वो अपने भक्तों को तार रहे हैं। अगले चुनाव की ! अगले चुनाव में देखेंगे। गरीब की तुलना हमारे शास्त्रों में ईश्वर से की गई है। आप सब जानते हैं। गरीबी हटाओ कहते ही गरीब का दिल इतना पसीज जाता है और वो इतना प्रसन्न-पुलकित हो जाता है कि उसकी हटे न हटे वो तुरंत आपकी गरीबी हटा देता है. जय हो प्रभु! हाँ तो अब हमें सार्वजनिक तौर पर डेंगी मच्छरों ने ललकारा है--- जीने नहीं डेंगी.



मगर एक बात है न जाने कितने जयचंद अब तक मारे धिक्कारे गये हैं तो क्या जयचंद कम हो गये। रावण सैकड़ो सालों से जल जल कर कालजयी हो गया है। मर गया होता तो भला मरे हुए को साल दर साल जलाने की जरुरत क्या थी।


हाँ तो मैं कह रहा था भारत एक नौटंकी प्रधान देश है। पिछले दिनों एक नेता उद्‌घाटन को आये। देखा कि इतनी भीड़ मैदान में नहीं थी जितनी स्टेज पर थी. नेता जि ने देश को देश के और देश्वासियों को आगाह किय. ‘दुश्मन’( काल्पनिक) सर पर है. एक दर्हन योजनाओं, परियोजनाओं की घोषणा की. फीते काटे, आधारशिलायें रखी गईं.एक नये युग के सूत्रपात का आव्हान किया गया। मगर ये क्या सब छुटभैयों में होड़ लगी थी नेताजी के साथ फोटो खिंचाने की। चाहे इसके लिए नेताजी के चरणस्पर्श ही करने पड़े। मुहल्ला स्तर के नेता, दलाल, स्मगलर, नकली शराब विक्रेता, भवन निर्माता सभी तो वहां थे।

गुरु गोविन्द दोऊ खड़े.............


नौटंकी की जो तख्ती हैं उद्‌घाटन पटि्‌टका, वह भी वह भी किसी चुटकुले से कम नहीं होती। श्रदेय रामलाल जी ने पूजनीय शामलाल जी के आर्शीवाद से माननीय झंडू सिंह की गरिमामयी उपस्थिति में, हृदय सम्राट......फलां...... फलां...... व जनता के सच्चे हितैषी फलां...... फलां...... कर्मठ....... कर्मवीर फलां फलां के प्रबल सहयोग से इस सड़क, बांध, पुल, रेल लाइन, सार्वजनिक शौचालय, चाय की थड़ी का उद्घाटन किया. हमें याद है एक छोटे से स्टेशन के करीब एक छोटी सी प्याऊ का उद्‌घाटन करने हम सभी जीप में लाद कर ले जाए गये थे। क्योकि एक वरिष्ठ अफसर उसका उद्‌घाटन कर रहे थे। आखिर ताली बजाने और साथ फोटे खिंचाने के लिए भीड़ भी तो चाहिए थी। उद्‌घाटन पटि्‌टका का ड्राफ्ट कई बार तैयार हो हो कर संशोधित, सुधार हो हो कर उन्हीं ने फाइनल किया था.

तो भाईयों और बहनों आदमी मादा मच्छर पर हाथ उठाए ये शोभा नहीं देता। अतः नेता नही..... नहीं....जबसे नेतानी ने मच्छरानी का पुतला फूँका है सभी मच्छर मच्छरानियों में खुशी की लहर दौड़ गई। वो जानते हैं कि अब वे भी नेता नेतानियों की नौटंकी की जमात के वोटबैंक बन गये हैं। महिमा मण्डित हो गए हैं। अब वो भी महज मक्खी, मच्छर पिस्सू नहीं रह गए बल्कि ‘इशू' बन गए हैं। उनके कालजयी होने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो गई है। पृथ्वी पर दो ही जमात शुरु से रह रही हैं। प्रलय के बाद भी दो ही जमात शेष रह जाएंगी नेता और मच्छर।










No comments:

Post a Comment