Ravi ki duniya

Ravi ki duniya

Friday, January 8, 2010

सुनहरी धूप की छाँव तले

तुम क्या उठे महफ़िल से, तमाम नूर ले गया कोई
तेरी शोहरत, तेरा जिक्र बहुत दूर ले गया कोई
बाग़ परेशाँ, बागबान परेशाँ, फूलों तक तेरी चर्चा जरूर ले गया कोई
तुमसे मिलके खामोश गुमसुम बैठे हैं
एक मुलाक़ात में ही सारा गुरूर ले गया कोई
तुम जवां हुए ज़न्नत में हलचल है,आखिर उनकी हूर ले गया कोई
तुम नज़र आ गए,तुम मुस्करा दिए वक्ते रुखसत
यही एक तस्वीर ले गया कोई
.......
दिल देखिये उसका शहर देखिये
आज के दौर में मुस्कराए कोई
तो उसका जिगर देखिये
मेरी उम्र से लम्बी है हिज्र की रात
होए है कब इसकी सहर देखिये
वो आये महफ़िल में तो उसकी बात हो
न आये तो उसकी चर्चा होए है
कौन सिखाये है उसे नए नए हुनर देखिये
जब से मेरे ख्वाब में आने लगे
सितमगर पर नया निखार है
वल्लाह उन पर मेरी मुलाक़ात का असर देखिये
...........
हम जागते हुए भी
तमाम उम्र सोते से रहे
तुम्हें ख्वाब में मिलने का
वादा करना न था
............
हम दोनों की ही कुबूल हो गयी दुआ
तेरे दिल को कभी दर्द न मिला
और मेरे दर्द को दवा
...........
उसकी ख़ामोशी भी बोलती है
तुम एक बार सुन कर देखते
पेश्तर इसके काफिर कहो मुझे
काश उस हसीं बुत को तुम भी एक बार देखते .

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