Ravi ki duniya

Ravi ki duniya

Thursday, January 14, 2010

पंखुरियां ...

मुझे इंतज़ार है उस दिन का
मेरे बुरे कर्म भी हो जायेंगे जब क्षम्य
पाप मेरे बन जायेंगे पुण्य
छोटे-बड़े अपने-पराये सब रोयेंगे
मुझे इंतज़ार है उस दिन का
जब शत्रु भी करेगा मेरी प्रशंसा
हाँ वही वो मेरी  मौत का  दिन 
मुझे इंतज़ार है उस दिन का
और जब तक वो दिन नहीं आता
तब तक लोग ढूंढते रहे हैं और रहेंगे
मेरे अच्छे कामों में भी बुराई
मेरे पुण्य में मेरा स्वार्थ
छोटे मजाक बनाते रहेंगे
बड़े हँसते रहेंगे मेरे सयानेपन पर
पराये ? पराये तो पराये हैं ही
शत्रु की तो बात ही क्या
मित्र भी करते रहेंगे बुराई
उस दिन तक
हाँ वही मेरे मौत के दिन तक
मुझे इंतज़ार है उस दिन का
.........
हृदय ही जीवन का अवलंबन नहीं एक
कर्त्तव्य भावना से बड़ा,
प्रेम से बढ कर है विवेक
देख आकर्षक एक किनारा,
भूला मांझी अपना गंतव्य
बह गया लहरों में एक आस लेकर दिव्य
राही भटक जाता अपनी राह देख मुस्कान की छाँव
स्वयं बाँध लेता रिश्तों की बेड़ियों से अपने पाँव
डोल गया मधुकर का मन देख नीरज के बाण
ना कर सका लोभ का संवरण,
खो बैठा अपने प्राण
ओ मानव पुनः सोच आँखें मल के देख
हृदय ही तो ...
चाह था पतंगे ने दीये के प्रकाश को
जब तन ही जल गया तो
कहाँ ले जाये मन की प्यास को
जुगनू ढूंढ रहा किसे इस घने अन्धकार में
किसकी चाह चाह कर भी ना छुपा प़ा रहा
पपीहा अपनी पुकार में
विरह का गीत क्यों गुनगुना रही हर आवाज
वेदना में घुला हुआ क्यों है ये संसार
क्यों नहीं तोड़ पाता मनुष्य बंधन प्रत्येक
हृदय ही तो जीवन का अवलंबन नहीं एक
कर्तव्य भावना से बड़ा प्रेम से बढ कर है विवेक
....
मृत्यु और जीवन में हुई आँख मिचोली
मृत्यु चोर बनी, जीवन पृथ्वी के वन में
सुख दुःख के झुरमुट में दुबक गया
ये लुका छिपी चलती रही
साठ बरस...सत्तर ..अस्सी बरस
और एक दिन मृत्यु ने
जीवन को ढूंढ ही लिया .
...........
एक तुम्हारा विचार मन में आने से
मेरी भावनाओं का आकाश बढ़ने लगा है
एक तुम्हारे आने से सच मानो
मेरे जीवन में प्रकाश बढ़ने लगा है
एक तुम जो भरोसा करने लगे  हो मुझ पर
सच मानो तब से मुझे अपने पर विश्वास बढ़ने लगा है .
..........
कह दो सनम से अब दिल की बस्ती
वो कहीं और बसायें
सनमखाने में मयखाने की याद आती है
मयखाने में सनमखाने  की रंगीनी बुलाती है
समझ नहीं आता ऐसे में हम कहाँ जाएँ
कह दो सनम से ..
दिल का भी क्या शोख अज़ब चलन है
नए नए गुलिस्तां मांगता हरदम है 
कोई उसे समझाए रोज रोज नए गुल 
कहाँ से हम लायें 
कह दो सनम से ...
ये रोज रोज की मीना-ओ-सुराही ठीक नहीं 
कह दो उनसे आज हमें 
चश्म-ऐ-साक़ी से पिलायें 
कह दो सनम से ..
........
दिल का सब हाल हम उनसे कह बैठे 
जिन्होंने हर बात हमसे छिपाई 
सच मैं भी था,सच वो भी थे 
फिर क्यों हरेक सच पर देते थे वो सफाई
कुछ ऐसा भी गुजरा है मेरे दिल के साथ
ये उनकी दोस्ती का दम भरता रहा 
जिन्होंने आखिरी दम तक दुश्मनी निभाई .
.....
मैंने माँगा था टुकड़ा,तुमसे ढँकने को तन 
तुमने सर से पाँव तक ढँक दिया,मुझे देके क़फ़न
चाहा था रोशनी भर के लिए चिराग
तुमने रोशन कर दिया घर मेरा
लगा मेरी झोंपड़ी में आग
भूख लगी तो तुमने मुझे आश्वासन खिला दिए
प्यास में ना जाने कितने नारे पिला दिए
काश तुम रोटी ही दे देते
ये तो ना रह जाता मलाल
कि सन सेंतालिस कि दोस्ती का भी
ना किया तुमने ख्याल
मेरे साथ कर लो तुम और कोई भी मजाक
मगर भगवान् के वास्ते ये मत कहो
मैं या मेरी संतान भविष्य में सुख भोगेंगे
आने वाली पीड़ी की चिंता हमें नहीं 
क्यों कि हम एक दूसरे का खून पी के 
अपनी संतान के खून को
अपनी तरह पानी ना होने देंगे
आने वाली पीड़ी तुमसे आप निपट लेगी
वो हक मांगेगी नहीं आगे बढ स्वयं झपट लेगी
.........
यदि सुबह शाम तक और शाम से सुबह तक
ये फासला नापना ही जीवन है
तब तो मैं बहुत जी लिया
किन्तु यदि ज़िन्दगी नाम है
शाम को कुछ सोचा
और सुबह कर दिखाने का
यदि ज़िन्दगी नाम है कुछ खो के पाने का
यदि ज़िन्दगी नाम है हर सुबह नूतन चेतना
हर संध्या एक नयी उम्मीद का
तब तो मैं बिलकुल नहीं जीया
अमृत समझ मृत्यु विष को
बूँद बूँद कर गले से उतारता रहा
उपलब्धि  के नाम पर हर साल
कलेंडर चढ़ाता उतारता रहा
जीवन अमृत तो मैंने बिलकुल नहीं पीया
अरे! मैं तो बिलकुल नहीं जीया
उफ़ ये क्या हुआ यम आ पहुंचा है
और मैंने अभी तक कुछ भी नहीं कीया
.......

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