Ravi ki duniya

Ravi ki duniya

Sunday, January 17, 2010

पंखुरियां

चिंगारी दबेगी नहीं इसलिए 
हमने शोलों को हवा दी है सनम 
आप नाजुक हैं  या नाजुक है नर्गिस का बदन 
अक्सर फूलों से ये जिरह की है सनम 
तुम पहले ही कब आये जो इस रात आओगे 
फिर भी उम्मीद में सुबह की है सनम 
यहाँ संभले वहां गिरे, जाम पर जाम पिए 
कुछ यूँ भी अपने मर्ज़ की दवा की है सनम 
जबसे देखा है आपको रक़ीब के पहलू में 
तबसे दुश्मन को भी दुआ दी है सनम 
.............


हसरत ही रह गयी साथ रहने की 
कुछ तुम्हारी सुनने की कुछ अपनी कहने की 
तुम मेरे ज़ब्त का इम्तिहान ना लो 
अभी नयी पड़ी है आदत ज़ख्म सहने की 
मेरे अश्क फ़क़त मेरे हैं 
तुमने नाहक ही बात उठाई मेरे अश्क पीने की 
मेरे शहर में आदमी के रोने पर है पाबंदी 
अब तो आवाज भी नहीं होती सपनों के ढहने की .
...........
तुम्हें पा के भी तुम्हारा साथ ना प़ा सके 
अल सुबह के सपने थे हाथ ना आ सके 
दिल गम से सराबोर है 
ख़ुशी के उन लम्हों की याद भी ना ला सके 
यूँ तो लिखने को लिखे बेहिसाब गीत 
मगर  किस काम के 
एक नगमा भी तुम्हारे साथ ना गा सके 

चुपके-चुपके  तस्सवुर  में ही
तुम्हें चाहा उम्र भर 
ना जाने क्यूँ इस से आगे बात ना बढ़ा  सके 
बाद मरने  के भी ये गम साथ जाएगा 
बेमानी रहा ये जीना 
हम तुम्हारे काम ना आ सके 
........
तुम खो गये इसमें इतना पेचीदा हो गया 
मेरा शहर 
तुम्हें क्या अब खुद को भी खोज ना पाऊँ 
एक गहरा अन्धेरा हो गया 
मेरा शहर 
हर एक चेहरे पर लिखी दर्द की आत्म-कथा 
बिक रही मुस्कान की जिल्द में 
कोई खरीदार नहीं, अनपढ़  हो गया 
मेरा शहर 
सब समझ कर भी अब कुछ बोल नहीं पाते 
फुसफुसाहटों के बीच गूंगा हो गया 
मेरा शहर 
आज सिमटे हुए हैं मेरे पहलू में 
कल शाम जिसने की थी शिकायत 
मेरे छूने  की 
एक अज़ब तिलिस्म हो गया 
मेरा शहर
वो मेरे आने की खबर सुन 
रक़ीब के घर जा बैठे हैं 
दिल छोटा हुआ है या फिर बड़ा हो गया 
मेरा शहर
जवानी में जवानी का एहतराम ना किया 
और अब जाती जवानी को पकड़ने का लालच 
देखते-देखते कितना कंजूस हो गया 
मेरा शहर 
झूम के जवाँ दिल ने की है हसरत 
या नूर तेरा जलवागर  है 
देखता हूँ आज अचानक जवान हो गया 
मेरा शहर











 

No comments:

Post a Comment