Ravi ki duniya

Ravi ki duniya

Saturday, January 9, 2010

सुनहरी धूप .....

आदमी अब आदमी कहाँ समाचार हो गया
कल तक था जो एतराज आज सदाचार हो गया
कभी शक,कभी हँसी का बायस रहा
हर वो शख्श जो यहाँ ईमानदार  हो गया
..........
मेरा दिल देखिये,मेरा जिगर देखिये
चुप जा रहा हूँ किस मकतल ले जाये सितमगर देखिये
यूँ तो जहाँ भर की बातें हैं मालूम
बस मेरी हालत से रहता है वो बेखबर देखिये
रकीब रोज तेरी शान में कशीदे गाये है
चुप सुन रहा हूँ मेरा सब्र  देखिये
ज़िन्दगी भर सताया है तुमने
अब ऐसी भी क्या बेरुखी
मेरे कातिल एक बार तो
मेरी तरफ देखिये
.........
एक बात तय हो गयी  
तुमसे दूर रह कर
हम जी नहीं सकते
तुमसे दूर रह कर
सब्र का इम्तिहान नहीं
तो ये और क्या है
हम रो नहीं सकते
तुमसे दूर रह कर
वो शख्श किस मिटटी के थे
जिनके घाव वक़्त ने भर दिए
हम तो और भी छलनी हुए
तुमसे दूर रह कर
देखा मुझे तो खास दोस्त
भी पहचान न पाए
kitne बदल गये हम
तुमसे दूर रह कर
अब शहर भर में बदनाम हूँ
तो सुकून है दिल को
मुहब्बत में मुझे भी कुछ हासिल हुआ
तुमसे दूर रह कर
.........
दिल में रख लोगे तो
ज़िन्दगी खुशियों से भर देंगे
हम दीये है जल के भी
तेर घर को रौशनी देंगे
तेरे आगे न बोलने की
कसम उठा ली है
फिर लाख बुरा कहो लाजिमी है
हम कोई सफाई न देंगे
रूठना- मनाना हमें न
आया उम्र भर
पर यकीन जानो तुम्हें
कभी रूठने न देंगे
मौत पे रोने वालों से पूछो जरा
जीते जी कहाँ थे
अपनी किस्मत में क्या यही  था
अजनबी हमें कन्धा देंगे
........
हम दोनों ने खूब दस्तूर
निभाए मुहब्बत के
तुमने बेजा आरज़ू न की
मेरा कोई अरमान न हुआ
लोग सुनते है और आज भी हँसते हैं
ये कैसी मुहब्बत थी
तुमने आहें न भरी
मैं बदनाम न हुआ
दोस्त हमारी मुहब्बत
किसी इबादत  से कम न रही
वरना बताये कौन यहाँ
इश्क में तबाह न हुआ
मुहब्बत दो रूहों के
एक हो जाने का सिलसिला थी
इसमें खुदा से अलहदा
हमारा कोई राजदार न हुआ
....
वो बोलने पाती तो
कोई बहाना लगाती
सब कुछ सच सच
कह देती है ये ख़ामोशी
तुमने अच्छा अहद लिया
होठ सीने का
हमें तो अपनी जान दे के
निभानी पड़ी ये ख़ामोशी
ज़माने को चाहिए
नए -नए अफ़साने दर रोज
दुनिया बहुत देर तक सहे
ऐसी नहीं है ये ख़ामोशी
दोस्त अच्छा हो तुम
लौट लो अपने  घर
महफ़िल में  उनकी आज बड़ी
गम-सुम सी है ये ख़ामोशी
.......
झूठे को ही सही  एक बार
रुकने को कह देते
दिल में मुहब्बत का
भ्रम रह जाता
..........
सुर्खी है आज
हर एक अखबार में
आदमी का भाव
गिर गया बाज़ार में
......

तुम क्या उठे महफ़िल से
ढूंढता फिर रहा हूँ
न जाने कहाँ खो गयी
मेरी ज़िन्दगी
एक बार तुम पलट के देख लो
इस उम्मीद में
दूर तक तुम्हें जाते हुए देखती रही
मेरी ज़िन्दगी
ये मानने में गुरेज़ कैसा
तेरी रहगुजर से जब भी गुजरा हूँ
वहीँ ठहर के रह गयी
मेरी ज़िन्दगी
न कोई उमंग,न कोई ख़ुशी
में जिंदा हूँ पर कहाँ है
मेरी ज़िन्दगी
आज पूछते हो तो सुनो
मेरे जीने का राज़
जादूगर की जान सी तुझ में रहती है 
मेरी ज़िन्दगी

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